टैगोर

The child who is decked with prince’s 
robes and who has jeweled chains round 
his neck looses all pleasure in his play; his 
dress hampers him at every step.

 In fear that it may be frayed, or stand with
dust he keeps himself from the world, and is
afraid ever to move.

 Mother it is no gain, thy bondage of 
finery, if it keep one shut off from the 
healthful dust of the earth, if it
rob one of the right of entrance to 

the great fair of common human life.  –(Geetanjali : Tagore)

हिन्दी काव्यानुवाद

राजकुमार सदृश बालक जो वसन सुसज्जित 
जिसकी ग्रीवा स्वर्णहार शृंखला विभूषित
देखो उसका क्रीड़ा से आनन्द तिरोहित 
पग-पग पर पट ही करते उसका पद रोधित ॥
सदा सभय है हो न जाय पट मलिन कलंकित
अतः कटा जग से न हाय पंकिल पद नर्तित 
फलद न माँ यह कृत तेरा श्रृंगार सुशोभित 
सुखद स्वास्थ्यप्रद धरणि धूल से करता वंचित ॥
व्यर्थ साज श्रृंगार वसन आडम्बर वैभव ।
हरता सहज मनुज जीवन का महामहोत्सव ॥   –(’पंकिल’ : मेरे बाबूजी)
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