अभी सुबह नहीं हुई है, पर जाग गया हूँ। एक अनोखी पुकार मन को वर्षों से आकर्षित करती रहती है- उसी को गुनगुना रहा हूँ- जगा रहा हूँ ईश्वर को या फिर अपने आप को, पता नहीं। इस पुकार को नीचे लिख रहा हूँ -इस पुकार और इसके पुकारने वाले के बारे में विस्तार से लिखूंगा अपने दूसरे ब्लॉग पर । फिलहाल ‘सच्चा’ की सच्ची पुकार गा लेने का मन कर रहा है । सच में प्रभु के जागने का वक्त भी शायद हो गया लगता है-

“मेरे सर्व जगो सर्वत्र जगो ।
प्रभु आप जगो परमात्म जगो ॥
दुःखांतक खेल का अंत करो ।
प्रभु अंत करो अब अंत करो ॥
सुखान्तक खेल प्रकाश करो ।
प्रभु आप जगो परमात्म जगो॥”

Categorized in:

Ramyantar,

Last Update: June 19, 2021

Tagged in:

,