विलस रहा भर व्योम
सोम
मन तड़प रहा
यह देख चांदनी
विरह अश्रु छुप जाँय, छुपाना
बादल तुम आना ।। 1 ।।
झुलस रहा तृण-पात
और कुम्हलाया-सा
मृदु गात
धरा दग्ध,
संतप्त हृदय की तृषा बुझाना
बादल तुम आना।। 2 ।।
विलस रहा भर व्योम
सोम
मन तड़प रहा
यह देख चांदनी
विरह अश्रु छुप जाँय, छुपाना
बादल तुम आना ।। 1 ।।
झुलस रहा तृण-पात
और कुम्हलाया-सा
मृदु गात
धरा दग्ध,
संतप्त हृदय की तृषा बुझाना
बादल तुम आना।। 2 ।।
सहज सुंदर रचना हिमांशु जी।
बहुत आभार!