क्या ब्लॉग साहित्य है? – मेरी हाजिरी
बिजली आ गयी। हफ्ते भर बाद। ’बूड़े थे पर ऊबरे’। बिजली की अनुपस्थिति कुछ आत्मबोध करा देती है। रमणियों की…
बिजली आ गयी। हफ्ते भर बाद। ’बूड़े थे पर ऊबरे’। बिजली की अनुपस्थिति कुछ आत्मबोध करा देती है। रमणियों की…
तुम आयेविगत रात्रि के स्वप्नों में श्वांसों की मर्यादा के बंधन टूट गयेअन्तर में चांदनी उतर आयीजल उठी अवगुण्ठन में…
यह देखिये कि बूँदे बरसने लगीं हैं, सूरज की चातुरी मुंह छुपा रही है और ग्रीष्म ने हिला दिये हैं…
मैं अपनी कवितायेंतुम्हें अर्पित करता हूँजानता हूँकि इनमें खुशियाँ हैंऔर प्रेरणाएँ भीजो यूँ तो सहम जाती हैंघृणा और ईर्ष्या के…
प्रेम की अबूझ माधुरी निरन्तर प्रत्येक के अन्तस में बजती रहती है। अनेकों को विस्मित करती है, मुग्ध करती है…
व्यथित मत होकि तू किसी के बंधनों में है, अगर तू है हवातू सुगंधित है सुमन के सम्पुटों में बंद…