मैं अपनी कवितायें
तुम्हें अर्पित करता हूँ
जानता हूँ
कि इनमें खुशियाँ हैं
और प्रेरणाएँ भी
जो यूँ तो सहम जाती हैं
घृणा और ईर्ष्या के चक्रव्यूह से
पर, नियति इनमें भी भर देती है
नित्य का संगीत ।
यह कवितायें तुम्हारे लिये
इसलिये
कि यह कर्म और कारण की धारणा से
पृथक होकर लिखी गयी हैं
और यह मेरी तृप्त भावनाओं का अर्घ्य हैं ।
मेरी क्षुद्र-मति
यही तो कह रही है बारंबार
अपने संकल्प और विकल्प के दोनों हाँथ जोड़कर
कि ये कवितायें मेरी हैं…..
कि ये कवितायें मेरी नहीं हैं !
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# दिनेश नंदिनी डालमिया के एक गद्य-खण्ड के भावों से अनुप्रेरित ..
यह कवितायें तुम्हारे लिये
इसलिये
कि यह कर्म और कारण की धारणा से
पृथक होकर लिखी गयी हैं
और यह मेरी तृप्त भावनाओं का अर्घ्य हैं ।
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कितना माधुर्य घोला है आपने अपनी कविता मे.
बहुत सुन्दर और भावपूर्ण
कि ये कवितायें मेरी हैं…..
कि ये कवितायें मेरी नहीं हैं !
जो भावना दीखती है कर्म और कारण से परे है …………अलौकिक एहसास को दीखाती कविता …………बधाई
Dinesh nandni dalmiya ji sae parivarik parichay haen isliyae unki kavita yahaa daekh kar achcha lagaa . hatho kae chitr ne Mother teressa ki yaad dila dii
Rachna
यह मेरी तृप्त भावनाओं का अर्घ्य हैं ।
बहुत ही अच्छी रचना ।
वाह बहुत लाजवाब. शुभकामनाएं.
रामराम.
atyant puneet kaavya……..
aaha!
aanand aa gaya
badhaai aapko !
बहुत खुब…
हर बार आप चकित करते हैं..
डालमिया जी के गद्य-खंड पर भी कुछ लिखें, प्रतिक्षा रहेगी।
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बहुत ही सुन्दर और भावमय रचना बधाई
कुछ हटकर, बहुत सुंदर!
एक शब्द-अद्भुत! बस…
आपकी रचनाओं में अनुभूति की पराकाष्ठा देखने लायक होती है। यकीन मानिए, इतनी कम उम्र में भावनाओं की इतनी गहनता विरले ही देखने को मिलती है।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
कि ये कवितायें मेरी हैं…..
कि ये कवितायें मेरी नहीं हैं !
अभिव्यक्ति की ऐसी सरसता ? . सुन्दर रचना. आभार.
आपकी इस रचना को पढ़कर हम तो हथप्रभ हैं. तारीफ करने के लिए भी उपयुक्त शब्द नहीं मिलते और यदि मिलते भी हैं तो पर्याप्त नहीं लगते. आपको नमन. आभार.
बधाई !
कमाल की अभिव्यक्ति !
बहुत अच्छी रचना लिखी है आपने
sunder abhivyakti.
आप अनुप्रेरित से ज्यादा साधक प्रतीत होते हैं …कविताओं के प्रति आपका आराध्य भाव प्रशंशनीय है …आभार !!
यह कवितायें तुम्हारे लिये
इसलिये
कि यह कर्म और कारण की धारणा से
पृथक होकर लिखी गयी हैं
और यह मेरी तृप्त भावनाओं का अर्घ्य हैं।
वाह! हिमान्शु जी, बड़े सच्चे मन से लिखा है आपने।
अच्छी कविता। बधाई।
very beautiful poem
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चर्चा । Discuss INDIA
priya himanshu bhai …aapne ye sochaa bhee kaise ki main aapko nahin padhtaa..darasal bhaagambhaag mein hee ye bhool ho jaatee hai, lijiye ab aapko follow kar raha hoon..ab bach ke dekhaaiye..aglee charchaa aapse hee shuru hogee..umeed hai kshama karenge..aur sneh banaaye rakhenge.