बिजली आ गयी। हफ्ते भर बाद। ’बूड़े थे पर ऊबरे’। बिजली की अनुपस्थिति कुछ आत्मबोध करा देती है। रमणियों की तरह इसकी एक झलक पाने की उत्कंठा रहने लगी है मन में। आज ही, अभी कुछ ही देर पहले तो आयी है मेरे आँगन। साहचर्य-सुख विस्तार ले रहा है।
ब्लॉग-जगत की टटकी बातचीत पर खयाल से नजर रखने वाले मेरे एक मित्र ने मुझे फोन पर हफ्ते भर की झलक दिखायी और एक अनुत्तरित प्रश्न “क्या ब्लॉग साहित्य है?”- इस पर अपना सार संक्षेप प्रस्तुत किया। कुछ अंश संक्षिप्ततः लिख रहा हूँ।
क्या ब्लॉग साहित्य है? — हाँ, है। पर समझ में नहीं आयेगा, स्वीकार नहीं करेंगे हम इस वक्त। क्या हिन्दी की आदिकालीन, अपभ्रंश युगीन रचनायें साहित्य कहीं गयीं? रामचन्द्र शुक्ल भी धोखा खा गए। फिर…. |
क्या ब्लॉग साहित्य है? — न्यायालय से कुछ पूछा या नहीं? वैसे जब समलैंगिक काम स्वीकृत काम हो सकता है तो फिर (नो प्रॉब्लम) ब्लॉगिंग भी… |
बातें तो और भी बहुत कुछ थीं । मैं नहीं लिख रहा हूँ यहाँ । इतना लिखने का लोभ संवरण नहीं कर पाया । हाँ एक बात जरूर कह देना चाहता हूँ कि हफ्ते भर बाद लौटा हूँ- अभी इस दौरान की एकाध पोस्ट पढ़ी है- अनूप शुक्ल जी से क्षमा चाहता हूँ कि इस विषय पर बहुत कुछ अत्युत्तम लिखा जा चुका है और मैं उनका लिंक नहीं दे पा रहा। वैसे चिन्ता भी कैसी? आशीष जी ने तो सामूहिक माफी माँग ही ली है। विनीत।
Saahitya to sahitya hota hai, bhale use kahin bhi rakh do.
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
तो क्या रहा फ़ाइनल ब्लॉग को साहित्य मान लें ?
कुछ भि हो सकत है ….कह नही जा सकता……
साहित्य अब घट-घट वासी, सॉरी! कण-कण वासी होता जा रहा है। धत्तेरे की फिर गलत मांड गया। अब तो तरकश में से सॉरी का तीर भी निकल चुका। क्या चलाऊँ। चलो बिना चलाए ही कह देता हूँ। असाहित्य का तो अस्तित्व ही नहीं है और साहित्य का कहीं अभाव नहीं। असल में ब्लाग में भी साहित्य नहीं है। साहित्य में ही ब्लाग भी है। सब कुछ साहित्य में ही है। ऐसा न मानें तो द्वैतवादी हो जाएंगे। अद्वैत ही भले।
आपके लेखन को ब्लॉग पर पढ़कर तो हमें विश्वास हो चला है की ब्लॉग में साहित्य है.
क्या कहते हैं हिमांशु जी! एक हफ्ते से बत्ती गुल थी? किस जिले में रहते हैं आप?
आखिर उत्तरप्रदेश की इतनी बुरी हालत क्यों है? कांग्रेस तो सारा दोष विपक्ष पर डाल देगी लेकिन इसने वहां लगभग चालीस साल तो शासन किया है न?
मैं मूलतः मध्यप्रदेश का रहनेवाला हूँ जहाँ के हालात कुछ बेहतर हैं. दिल्ली में भी बेहतर दिल्ली दक्षिणी दिल्ली में रहने का सुख ले रहा हूँ.
खैर, मैं कहाँ इसमें पड़ गया. आपकी गैरहाजिरी के बारे में ख़याल तो आया था मुझे.
अब आप मिलेंगे अक्सर, बत्ती गुल न हो बस.
साहित्य को परिभाषित करना एक कठिन कार्य है!
बिजली फिर से आ जाने की बधाई !!
और यह आपने जो लिखा है इतना संक्षिप्त वह क्या है ?
आने वाली पीढी डिसाइड करेगी कि हम जो कर रहे हैं उसे साहित्य के नाम पर save किया जाएगा या कूडा समझ कर delete:)
तो निष्कर्ष क्या है मित्रवर?
विवेक बाबू के सवाल को कॉपी पेस्ट मानकर दोहरा लिया जाए .
अनूप शुक्ल जी से क्षमा चाहता हूँ कि इस विषय पर बहुत कुछ अत्युत्तम लिखा जा चुका है और मैं उनका लिंक नहीं दे पा रहा । वैसे चिन्ता भी कैसी ? आशीष जी ने तो सामूहिक माफी माँग ही ली है । विनीत ।
waah aap padhey haen aur sahejtey bhi haen
बिजली आ गई-विचार क्रांति अभियान चालू!!
हिमांशु जी, ऐसा नहीं चलेगा..सामूहिक माफ़ी केवल इस शर्त पर मांगी है कि आगे से ऐसी गलती नहीं होगी। आप फ़िर से वही गलती दोहरा रहे हैं.. फ़िर से रैगिंग ले लेंगे हमारे सम्माननीय सीनियर्स 🙂