तुम आये
विगत रात्रि के स्वप्नों में

श्वांसों की मर्यादा के बंधन टूट गये
अन्तर में चांदनी उतर आयी
जल उठी अवगुण्ठन में दीपक की लौ
विरह की निःश्वांस उच्छ्वास में बदल गयी
प्रेम की पलकों की कोरों से झांक उठा सावन
और तन के इन्द्रधनुषी आलोक से
जगमगा उठा मन,

मैं कैसे प्रेमाभिव्यक्ति की राह चलूँ
होठ तो काँप रहे हैं
सात्विक अनुभूति से ।

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Ramyantar,

Last Update: June 19, 2021