बहुत पहले जब अपने को तलाश रहा था एक कविता लिखी थी- कुछ रूमानी- कसक और घबराहट की कविता। शब्द जुटाने आते थे और उस जुटान को मैं कविता कह दिया करता था या कहूं दोस्त कह दिया करते थे।…
क्या कहूँ की कविता ने लुभाया बहुत और लिखने की ताब भी पैदा की, पर लिखने की रौ में मैं यह भूल गया कविता अगर आज की साज़िश का हिस्सा नहीं बनती तो वो कविता नहीं बनती । साहित्य के…