टिप्पणीकारी को लेकर सदैव मन में कुछ न कुछ चलता रहता है। नियमिततः कुछ चिट्ठों का अध्ययन और उन चिट्ठों पर और खुद के चिट्ठे पर आयी टिप्पणियों का अवलोकन बार बार विवश करता रहा है कुछ व्यक्त करने के लिये। यद्यपि यह मेरा स्वभाव नहीं है परन्तु इस टिप्पणीकारी पर कुछ भी लिखने के पहले मैंने टिप्पणी/ टिप्पणीकारी केन्द्रित कुछ आलेख पढ़ने चाहे/ पढ़े भी। एक मनोदशा बननी चाहिये थी, पर बनी नहीं।
यह सभी आलेख प्रकारांतर से प्रतिक्रिया के तौर पर लिखे गये आलेख थे और मौलिक रूप से टिप्पणीकारी के यथार्थ स्वरूप और उसके सौन्दर्य को व्यक्त करने में असमर्थ थे। अतः वांछित सन्दर्भ न पा सकने की वजह से एक निश्चित रूपरेखा न बन सकी और इसीलिये मन में जो कुछ अस्त-व्यस्त विचार आये उन्हें ज्यों का त्यों लिख रहा हूँ।
टिप्पणीकारी का महत्व
टिप्पणीकारी का महत्व इस बात में निहित है कि वह प्रविष्टि के मूलभूत सौन्दर्य को अक्षुण्ण बनाये रखते हुए उस प्रविष्टि के रिक्त स्थान को भरे और श्रृंखला को अविरल बनाये रखे। प्रविष्टि के वाक्यांशों के बीच छुपे हुए गहरे अर्थ को अनावृत करना अथवा उन वाक्यांशों की व्यर्थता को प्रचारित करना भी तो टिप्पणीकारी का ही कर्तव्य है। टिप्पणी के माध्यम से –
“कहीं हकीकत-ए-जाँकाहि-ए-मरज लिखिये
कहीं मुसीबत-ए-नासाजि-ए-दवा लिखिये।”
सामयिक प्रविष्टियों पर की जाने वाली टिप्पणियों की एकरसता भी मुझे समझ में नहीं आती। सामयिक प्रविष्टियों के लिये अथवा उन पर की गयी टिप्पणियों के लिये लिखा गया हर शब्द सिर्फ सामयिक नहीं होता, वह समय की चेतना को स्पर्श करता हुआ उससे आगे भी जाता है। तो सामयिक के लिये शाश्वत टिप्पणी क्यों नहीं?
अभिव्यक्ति की एक कला है टिप्पणी करना
जिस प्रकार प्रविष्टि के लेखन क्रम में चिट्ठाकार पठनीयता, प्रेषणीयता और स्वीकृति- तीनों सामान्य मूल्यों की प्रतिष्ठा एक साथ करता है, करने का प्रयास करता है; क्या उसी प्रकार उसे टिप्पणीकारी के लिए निश्चित सामान्य मूल्य निर्धारित नहीं कर लेने चाहिये? टिप्पणी केवल प्रशंसा या प्रक्षेपित आलोचना का माध्यम नहीं है बल्कि वह भी अभिव्यक्ति की एक अल्पज्ञात कला है। लिखित तौर पर अभिव्यक्ति का यह लघु रूप चिट्ठाकारी से ही सम्भव हो पाया है। टिप्पणी बार-बार दोहराती है –
कद्र-ए-संग-ए-सर-ए-राह रखता हूँ
सख़्त अरजाँ है गिरानी मेरी।
छः माह की अपनी इस लघु चिट्ठाकारी में मैंने टिप्पणियों के आमोद का अन्तरानुभव किया है वहीं इन टिप्पणियों के उपादान व्यापार से विचलित भी हुआ हूँ। कई प्रविष्टियाँ (अपनी भी और अन्य की भी ) इस ब्लॉग-संसार में औचित्यहीन और प्रतिष्ठाच्युत होते देखी हैं और कई को बिना वजह ही प्रतिष्ठित और गुणाभिहित होते भी देखा है। टिप्पणीकार के अपने स्व-भाव का यह मनोरंजन भी कितना मनोरंजक है कि हम अपने ही मन के हिसाब से दूसरे के मन को रंगते जाते हैं। एक बार ईर्ष्या की प्रतीष्ठा कर देने से सीधी घटनायें भी उसी के पाण्डुरंग में रंगती चली जाती हैं।
पर क्या यह आँख का काम है? नहीं, यह चश्मे की करामात है। अब ख़याल करिये कि मंथरा (जानते हैं न? कैकेयी की दासी) झुकी है, तो जाहिर है वायु-रोग से ही झुकी है। परन्तु क्या कमल वायु से नहीं झुकता? और उसकी शोभा किसे मुग्ध नहीं करती? वह तो सौन्दर्य नहीं, सौन्दर्य की अदा है……। अब इस चश्मे से मत देखिये ब्लॉग-प्रविष्टि को।
इतनी भारी भरकम हिंदी नेट पर देख लगा कि नेट कहीं बैठ न जाय 🙂
वैसे इस विषय पर पहले भी काफी कुछ लिखा जा चुका है। टिप्पणीयों का आना न आना कई फैक्टरों पर निर्भर है और सभी फैक्टरों का निचोड निकाले तो कई रंग बाल्टी में जमा हो जायेंगे 🙂
इस आलेख की भाषा पर सतीश जी की टिप्पणी सही है। जब हम आम फहम शब्दों के स्थान पर इस तरह के शब्दों का प्रयोग करते हैं तो नेट पर अपने पाठकों की संख्या कम कर लेते है।
यह तो अभी प्रस्तावना ही है -ऐसा लगा की विषयानुरूपण अभी अभी अधूरा है -रही बात भाषा के स्तर की तो ऐसी नेट को तो नहीं बैठाएगी ज्यादातर लोगों के दिमाग का भट्ठा जरूर बैठा देगी.लेकिन दोष कहा है ? हम हिन्दी की स्लमडाग सफलता के लिए क्या जरा भी उत्साहित नहीं हो सकते?
ठीक है आमजन की बोली भाषा में संवाद अधिक कायम होता है -तो क्या यह माना जाय कि नेट पर सब आम लोग ही हैं -क्या बुद्धिजीवियों के बीच भी भदेस बोली में ही बतियाना उचित है ?
bloging is all about issues and contemprory issues so comments will be like a debate heated or so
but many from hindi background want to use blogging as medium to promote “good and correct hindi ” which leaves very little scope for comments
the blog is yours and you are free to chose what you want to do with it
you can use it as blog or as a alternative to print medium
but post like these have no scope for common bloggers who dont come from hindi background like me
“टिप्पणी केवल प्रशंसा या प्रक्षेपित आलोचना का माध्यम नहीं है बल्कि वह भी अभिव्यक्ति की एक अल्पज्ञात कला है” – इस एक पंक्ति में आपने टिप्पणीशास्त्र का रस निचोड़ दिया! धन्यवाद!
महत्वपूर्ण बात है की आप इस में अपना योगदान कैसे रखते है यानी आपकी टिप्पणिया किसी गंभीर लेख पर भी संक्षिप्त हो तो ? या किसी विमर्श में आपकी नियमित भागीदारी है या नहीं…..मेरा मानना है कोई लेख अगर आपको छू गया है भीतर तक तो …..बिंदास अपने विचार रखे….या असहमत है तो भी बिंदास लिखे ….बिना किसी पूर्वाग्रह के….मेरे निजी अनुभव में कई टिप्पणीकारो ने ऐसी टिप्पणिया दी है जो पोस्ट से भी ज्यादा सार्थक है….इसलिए इस गणित में पड़े बगैर बस मन से करे…..
अभी तक जितनी भी टिप्पणियाँ आयीं हैं उनमें इस बात पर ही इंगित है कि इस प्रकार की हिन्दी के प्रयोग से अधिक टिप्पणियाँ नहीं आतीं । वस्तुतः मेरा ध्या्न ज्यादा टिप्पणियों के आने पर नहीं है, और न ही मैंने इस आलेख में यह जताने की कोशिश ही की है । मैं टिप्पणियों की मूल्यवत्ता की बात कर रहा था । टिप्पणी क्या करे, क्या न करे इस सम्बन्ध में बहुत कुछ समझने की कोशिश में हूँ मैं ।
रही बात ऐसी हिन्दी की तो, यह मैंने सायास नहीं लिखा, अनायास ही लिख दिया । @ सतीश जी, अच्छा ही है कि ऐसी हिन्दी से नेट कुछ भारी हो जाय, कुछ तो गम्भीरता आये ब्लॉगिंग में, हल्का रहेगा तो किसी भी हवा से उड़ जाने का खतरा तो बना ही रहेगा । @ द्विवेदी जी, कोशिश करुँगा कि पाठकों के समझ में आने लायक हिन्दी लिखूँ ।@ Rachana Ji, I always want to use blogging as a medium to promote “good and correct hindi “.
बोल के लब आजाद हैं तेरे
तेरा सुतवां जिस्म है तेरा
बोल के सच जिन्दा है अब तक .
(फैज़)
इसलिए सकरात्मक – नकरात्मक
टिप्पणी करते रहो .लेखन की
द्रिष्टि से टिप्पणी जैसी भी हो
स्वागत करना चाहिए ,खुले दिल से.
लेखन और टिप्पणी दोनों को आजाद रहने
रहने दो .नियमो ,जंजीरों से दूर
रखो
ab sonch kar tippni karni padegi kya? yahan sonch kar hi karungi.
I always want to use blogging as a medium to promote “good and correct hindi” …फिर तो मेरा इधर आना कठिन लगता है ..आई भी तो चुपचाप चली जाउंगी ..बिना कुछ कहे
🙂
badhiya hai..
ham to kabhi aisi bhasha me jaan-bojhkar apne doston se baat bhi kar lete hain to sabhi ka yahi kahna hota hai ki is par fir se blaog ka pret chadh gaya hai.. 😉
हिमांशुजी,,, आपका लेख और उस पर आई टिप्पणियों को पढ़ा..आपकी प्रतिक्रिया भी पढी…मेरे विचार में मन में आए अनायास भाव को आसानी से व्यक्त करने का भाव ही टिप्पणी कहलाता है.कई बार हम कई लेख और कविताएँ पढ़ कर भी प्रतिक्रिया नहीं कर पाते.. कई ब्लॉग हैं जिन्हे हम नियमित पढ़ते है लेकिन टिप्पणी दे पाने मे अपने को असमर्थ पाते हैं…हर पाठक अपने आप में विशेष है..
हिमांशु जी, आपके इस प्रकार लेखन की मैं भी तारीफ करता हूँ। अच्छा है इस प्रकार का क्लिष्ट लेखन। पर मेरे हिसाब से यह शैली पाठ्य पुस्तकों की शैली है और लेखक और पाठक के बीच अनायास एक प्रकार के अदृश्य दीवार का निर्माण हो जाता है जो दोनों को जोडे रखने में बाधक है।
फुरसतीया जी के ब्लॉग से ही एक मजेदार अंश मिला है जो कि क्लिष्ट लेखन को लेकर है। इसके फायदे के रूप में यह भी है कि कोई इसे चुरा नहीं सकता। ब्लॉग लेखों के चोरी हो जाने की घटनायें इधर दिनों दिन बढ रही हैं और ऐसे में फुरसतिया जी का यह लेख ब्लॉग लेखन चोरी होने से बचाने का एक उत्तम उपाय है।
मुझे लगता है कि आप ने यह उपाय पहले ही अपना रखा है क्लिष्ट लेखन के जरिये 🙂
वैसे अरविंद जी की टिप्पणी भी मजेदार है। मुझे लगा कि ये पोस्ट हम जैसे सामान्य जीवों के लिये है न कि बुध्दिजिवियों के लिये। इसीलिये मैंने टिप्पणी करने का साहस किया। मुझे क्या पता था कि ये बुध्दिजिवियों के लिये पोस्ट लिखी है। गलती से मिस्टेक कर बैठा 🙂
बहरहाल क्लिष्ट लेखन पर फुरसतिया जी का लेख पढिये। काफी मजेदार है। ये रहा लिंक
http://hindini.com/fursatiya/?p=238
बिना आपकी बात पूरी हुये ही मत-विमत प्रारँभ हो चुका है
पर, असंगत न रहते हुये सम्पूर्ण आलेख आद्योपाँत पढ़ने के उपराँत ही, मैं टिप्पणी दे सकूँगा !
धन्यवाद !
हम भी एक टिपण्णी करना चाहते हैं परन्तु कुछ सूझे तब न!
अगली कड़ी पहले पढ़ी और यह बाद में.. बहुत अच्छी प्रस्तुति ..
विद्वानो के लेख पर टिप्पणी करने से पहले चार बार सोचना पड़ता ह । अगर बिना सोचे टिपियाना हो तो केवल वाह वाह से भी काम चल जाता है । मेरी एक शिकायत है । हिमांशु भाई आपकी भाषा शैली काफी कठिन प्रतीत हो रही है । समझने के लिये दो बार पढना पड़ता है ।
बात का सूत्र तो यहीं से लेना होगा "हिमांशु भाई आपकी भाषा शैली काफी कठिन प्रतीत हो रही है । समझने के लिये दो बार पढना पड़ता है ।" यदि दो बार पढ़ने के बाद हिमांशु जी को समझ लेते हैं तब तो गनीमत है… उम्मीद करिये की आप उनकी कविता के रसास्वादन के भी पात्र हैं..