मैं अपनी कवितायेंतुम्हें अर्पित करता हूँजानता हूँकि इनमें खुशियाँ हैंऔर प्रेरणाएँ भीजो यूँ तो सहम जाती हैंघृणा…
व्यथित मत होकि तू किसी के बंधनों में है, अगर तू है हवातू सुगंधित है सुमन के…
तुम्हें सोचता हूँ निरन्तर अचिन्त्य ही चिन्तन का भाव बन जाता हैठीक उसी तरह, जैसे, मूक की…
वर्ष अतीत होते रहेपर धीरज न चुकाऔर न ही बुझातुम्हारा स्नेह युक्त मंगल प्रदीप, महसूस करता हूँ-तुम…
चुईं सुधियाँ टप-टपआँखें भर आयीं । कैसे अवगुण्ठन को खोलतुम्हें हास-बंध बाँधा थाकैसे मधु रस के दो…
डिग (Digg) पर सफर करते हुए उसके आर्ट्स एंड कल्चर (Art & Culture) वर्ग से इस रोचक…