सौन्दर्य लहरी (छन्द संख्या 66-70)
सौन्दर्य लहरी का हिन्दी काव्यानुवाद कराग्रेण स्पृष्टं तुहिनगिरिणा वत्सलतयागिरीशेनोदस्तं मुहुरधरपानाकुलतया करग्राह्यं शंभोर्मुखमुकुरवृन्तं गिरिसुते कथंकारं ब्रूमस्तव चुबुकमौपम्यरहितम्॥66॥ पाणि सेवात्सल्यवशजिसको दुलारा हिमशिखर नेअधरपानाकुलितजिसकोकिया स्पर्शित चन्द्रधर नेमुख मुकुर के वृन्त समपकड़ा जिसे सविलास शिव नेकौन वर्णन कर सकेगाउस अमोलकचिबुक का फिरसत्य ही हैं ललित अनुपमचिबुक…