पिछली प्रविष्टि से आगे …. ना ! क़तई नहीं । आदमी कभी जुदा-जुदा नहीं होते । आदमी…
अपने नाटक ’करुणावतार बुद्ध’ की अगली कड़ी जानबूझ कर प्रस्तुत नहीं कर रहा । कारण, ब्लॉग-जगत का…
कल की ना-ना तुम्हारी – मन सिहर गया, चित्त अस्थिर आगत के भय की धारणायें, कहीं उल्लास…
मैं तो निकल पड़ा हूँ सुन्न एकांत-से मन के साथ जो प्रारब्ध के वातायनों से झाँक-झाँक मान-अपमान,…
जिन्दगी ज़हीन हो गयी मृत्यु अर्थहीन हो गयी । रूप बिंध गया अरूप-सा सृष्टि दृश्यहीन हो गयी…
कविता ने शुरुआत से ही खूब आकृष्ट किया । उत्सुक हृदय कविता का बहुत कुछ जानना समझना…