
मुझे वहीं ले चलो मदिर मन जहाँ दिवानों की मस्त टोली
 होली, होली, होली।
 कभी भंग मे, कभी रंग में, कभीं फूल से खिले अंग में
 कभी राग में, कभी फाग में, कभीं लचक उठती उमंग में
 पीला कोई गाल न छूटे मल दो सबमें कुंकुम रोली – 
 होली, होली, होली॥१॥
 किसी षोडसी का थाम अंचल, वसंत गा ले वयस्क चंचल 
 भर पेटाँव वैकुण्ठ भोग है, वसंत बाला की मस्त बोली –
 होली, होली, होली॥२॥
 जग की रंजित परिधि बढ़ा दो, वसंत की रागिनी पढ़ा दो
 प्रति उल्लास हर्ष वनिता को रंग भरी चूनरी उढ़ा दो 
 हर तरुणी का चुम्बन कर लो भुला के बातों में भोली-भोली –
 होली, होली, होली॥३॥
 रंगों की इन्द्रधनुषी माया, सबकी सुरभित बना दो काया 
 हुड़दंगी स्वर में झूम गाओ, ’वसंत आया, वसंत आया’
 ’फागुन में प्रियतमे न रूठो, कर दो अबकी माफ ठिठोली’ –
 होली, होली, होली॥४॥
 
  
  
  
  
  
 