न समझने की ये बातें हैं, न समझाने की
जिंदगी उचटी हुई नींद है दीवाने की।
पढ़ कर कई बार सोचता रहा- “जिंदगी उचटी हुई नींद है दीवाने की। ” जिंदगी समझ में नहीं आयी, आती भी कैसे? जिंदगी जिसकी उचटी हुई नींद है, उस दीवाने का ही पता न था। पहले इस दीवाने का पता तो चले, तब तो ढूढ़ें यह दीवानगी या दीवानापन।
पश्चिम ने कहा ये दीवाना एक रोगी है और दीवानापन उसकी बीमारी है। यह मस्तिष्क में प्रकट होती है। दिमाग की बीमारी है यह। इसका कारण मानसिक अपर्याप्ति, मानसिक पक्षाघात, मानसिक शून्यता अदि हैं। लोगों ने कहा, दीवानगी की जड़ें मनुष्य के अतीत में हैं, उसके कटु अनुभवों में हैं। बात यहीं तक रहती तो ठीक- लोगों ने यह भी कहा कि मनुष्य के कटु अनुभव का मतलब सिर्फ़ उसके अपने अनुभव नहीं, उसके पूर्वजों के अनुभव भी हैं। अब विचारिये की बात यहाँ तक पहुंचे तो दीवानगी कितना कहर ढाए।
विश्लेषकों के मस्तिष्क की भी दीवानगी कम न थी
मनोविश्लेषकों ने कहा- दिमाग की यह वृत्ति है, जो अमानवीय है और यह कुछ इतर नहीं बल्कि कर्मों को प्रेरित कराने वाली शक्ति बन कर मनुष्य के अन्तश्चेतन में बसी है। पश्चिम घबरा गया था इससे- दीवानगी को समझा ही नहीं था उसने। उसके चिकित्सकों ने कहा की चूँकि ये दिमाग का रोग है इसलिए दिमाग को बिजली के झटके दो; क्योंकि ये झटके दिमाग के हिस्स्सों को धीरे-धीरे निर्जीव कर देते हैं। मरीज थक जाता है, उत्पात रुक जाता है। पर दीवानगी का रोग ख़तम नहीं हो जाता इससे।
पश्चिम के मनोविश्लेषकों ने कहा (मैं फ्रायड की बात कर रहा हूँ)- ‘मस्तिष्क का विश्लेषण इसका निदान ढूंढ लेगा, घबराइये मत’। पर क्या आपको मालूम नहीं कि यह मनोविश्लेषण करते करते माहिर मनोविश्लेषक भी दिमाग के इस फेरे में कितनी आसानी से पड़ गए। ‘जुंग’, ‘टाउस्क ‘ या स्वयं ‘फ्रायड’ ख़ुद ही अपने-अपने रोगियों के प्रेम में पड़ गए। देखा! ये है दीवानगी का आलम। पता है न आपको कि अपने जमाने का सबसे बड़ा मस्तिष्क ‘नीत्शे’ भी ‘फ्रायड’ की उसी प्रेमिका के पीछे इसी दीवानगी के खलल से पागलखाने पहुँच गए थे। बाप रे-
“वह दीवानगी-ए-शौक कि हरदम मुझको
आप जाना उधर और आप ही हैराँ होना ।”
तो बात ऐसी हुई कि फ्रायड और उनके पदचिन्ह-चारकों ने साफ़ साफ़ कह दिया कि ले-दे कर हम इस दीवानगी का अध्ययन ही कर सकते हैं- न बच सकते हैं इससे, न बचा सकते हैं।
शेष फ़िर।
वह दीवानगी-ए-शौक कि हरदम मुझको
आप जाना उधर और आप ही हैराँ होना ।
-और जब आना तब बताना दीवानगी की बातें.
अच्छा लगा यह दीवानगी का लेखा जोखा 🙂 दीवाने ही समझे दीवानों का हाल
रोचक………..
बहुत खूब,
दीवानगी के इस शानदार वर्णन के लिए बधाई.
ठीक ही है -“न बच सकते हैं इससे, न बचा सकते हैं।”- “how is it in our cotrol to love or not to love” -Arnold.Yet ….
दीवानगी यानी जुनून। यह शब्द मुझे बहुत रुचता है। मनोवैज्ञानिक अभिप्राय कुछ भी हो।
दीवानों से मत पूछो दीवानों पे क्या गुजरी है ???
वैसे भी दीवानापन और झटकों का बहुत पुराना रिश्ता रहा है!!!
दीवानगी का लेखा जोखा. शानदार वर्णन के लिए बधाई…
दीवानगी के इस शोधपरक मनोवैज्ञानिक विश्लेषण ने तो मुझको दीवाना ही बना दिया………..
har insan deevana hai fir deevane kya karenge deevanepan ka ilaj .
manovaigyanik vivechana ke liye dhanyawaad
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