Marigold (Photo credit: soul-nectar) |
कहता है विरहित मन, कर ले तू कोटि जतन
रुकना अब हाय नहीं, अब तो चले जाना है ।
छूटेंगे अखिल सरस, सुख के दिन यों पावस
हास कहीं रूठेगा, बोलेगा बस-बस-बस
दिन में अन्धेरा अब रात ही ठिकाना है,
रुकना अब हाय नहीं, अब तो चले जाना है ।
कैसे कह पाऊँगा अपने दुःख तुमसे
मेरे तो सारे सुख दूर कहीं झुलसे
अब तो स्व-अंजलि में तिमिर ही सजाना है,
रुकना अब हाय नहीं, अब तो चले जाना है ।
अब भी पर साहस है, तेरी शुभ स्मृति का
यह लिपटी है ऐसे, ज्यों लिपटी लघु लतिका
अन्तिम जीवनक्षण तक बस याद लिये जाना है
रुकना अब हाय नहीं, अब तो चले जाना है ।
अन्तिम जीवनक्षण तक बस याद लिये जाना है
रुकना अब हाय नहीं, अब तो चले जाना है ।…
अनिल कान्त
मेरी कलम – मेरी अभिव्यक्ति
वाह आशा है जीवन है !
वाह क्या बात है, यही तो जीवन है, आस है.
धन्यवाद
सुन्दर काव्य चित्रण
—
गुलाबी कोंपलें । चाँद, बादल और शाम
वाह क्या बात है, यही तो जीवन है, आस है.
धन्यवाद
मुझे शिकायत है
पराया देश
छोटी छोटी बातें
अब तो स्व-अंजलि में तिमिर ही सजाना है,
रुकना अब हाय नहीं, अब तो चले जाना है ।
उद्दात्त भाव !