The poem “O fool, to try to carry the self upon thy own shoulders!” by Rabindranath Tagore is a profound piece that delves into the themes of self-reliance and the spiritual folly of trying to bear one’s own burdens without divine assistance. The poem suggests that it is unwise to rely solely on oneself and instead encourages the reader to leave their burdens to a higher power who can bear all.

Original Text of the poem

Rabindranath Tagore

O fool, to try to carry the self upon
thy own shoulders! O beggar, to
come to beg at thy own door!

Leave all thy burdens on his hands
who can bear all, and never look
behind in regret.

Thy desire at once puts out the light
from the lamp it touches with its
breath. It is unholy- take not thy
gifts through its unclean hands.

Accept only what is offered by
sacred love.


अपने को ही अपने कंधों पर बैठाये अज्ञ दुखारी एक गहरी रचना है जो आत्म-निर्भरता और दिव्य सहायता के बिना अपने बोझ को उठाने की आध्यात्मिक मूर्खता के विषयों में गहराई से उतरती है। यह कविता दिव्य परमात्मा द्वारा दी गई वस्तुओं को सहज स्वीकृति करने एवं व्यक्तिगत इच्छाओं को महत्व न देने पर बात करती है और स्पष्ट करती है कि व्यक्तिगत इच्छाएँ निश्चय ही अंतरात्मा की ज्योति को बुझा सकती हैं, और यह पवित्र प्रेम ही है जिसका दिया सब कुछ श्रेयस्कर है।

Hindi Translation by Prem Narayan Pankil

अपने को ही अपने कंधों पर बैठाये अज्ञ दुखारी।
अपने ही दरवाजे पर तू भीख माँगता खड़ा भिखारी॥

क्यों न उसी के हाँथों में निज सारा बोझ डाल देता है
जो प्रसन्नता से हँस हँस सबका बोझा सम्हाल लेता है
उसको सौंप न पुनः देख पीछे ले पछतावा लाचारी-
अपने ही दरवाजे पर तू भीख माँगता खड़ा भिखारी॥

तेरी इच्छा का श्वांसानिल तेरी दीपक ज्योति बुझाता
इससे मत उपहार माँग कुछ यह तो महामलिन है दाता
पूत प्रेम पंकिल मिलता जो वही करो स्वीकृत सुखकारी-
अपने ही दरवाजे पर तू भीख माँगता खड़ा भिखारी॥