ओ प्रतिमा अनजानी, दिल की सतत कहानी
कहता हूँ निज बात सुहानी, सुन लो ना।
कहता हूँ निज बात सुहानी, सुन लो ना।
डूबा रहता था केवल जीवन की बोध कथाओं में
अब खोया हूँ मैं रूप-सरस की अनगिन विरह-व्यथाओं में
सत्य अकल्पित-मधुरित-सुरभित, अन्तरतम में हर पल गुंजित
ओ प्रतिमा अनजानी, दिल की सतत कहानी
मुझ पर हो कर सदय, मुझे ही चुन लो ना।
संसार-सुखों की छाया का आस्वाद नहीं पाना मुझको
हो जहाँ नहीं तेरी ध्वनि वो संवाद नहीं पाना मुझको
हे प्रात-गीत, हे सुहृद मीत, मन-वीणा के तारों-सी झंकृत
ओ प्रतिमा अनजानी, दिल की सतत कहानी
हों हम एकाकार, स्नेह के स्वप्न यही तुम बुन लो ना।
himanshu , really very sweet poem . congrets
बहुत कोमल भाव जो आप के वय के अनुरूप ही हैं .
आपकी कविता बहुत सुंदर है। प्रेम और कोमलता के साथ साथ आध्यात्मिकता का भाव भी है। शब्दों का बहुत सुंदर संयोजन किया है।
बहुत सुन्दर!
घुघूती बासूती
इतने अनुरोध पर तो बात मान ली जानी चाहिए .
पर अनजानी प्रतिमा तक बात पहुँचना जरूरी है , हम तक पहुँचे या न पहुँचे !
साधु साधु !
हों हम एकाकार , स्नेह के स्वप्न यही तुम बुन लो ना।
तथास्तु !
बहुत बेहतरीन!!! वाह!!
मन भावन, उतम , सुंदर.
धन्यवाद
बहुत मधुर!
भावपूर्ण कविता। बधाई।
बहुत ही सुंदर कविता
संसार-सुखों की छाया का आस्वाद नहीं पाना मुझको
हो जहाँ नहीं तेरी ध्वनि वो संवाद नहीं पाना मुझको
atyant sundar.
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