करुणावतार बुद्ध- 1, 2, 3, 4 के बाद प्रस्तुत है पाँचवीं कड़ी-
(चतुर्थ दृश्य )
वनदेवता: चलो सिद्धार्थ! तुम्हें वहाँ तक जाना है, जहाँ निखिल यात्रा विश्राम बन कर थम गयी है। जहाँ दिशाओं का स्वप्न नहीं जगा है। जहाँ काल अपने पंख समेट कर सोया है और जहाँ जीवन अमृत का छन्द बना गुंजरित है। तुम्हारी यात्रा वहाँ तक है।
वनदेवता: ओ ब्रह्माण्ड को ज्योतित करने निकले अमल ज्योतिपुंज! ओ अनंत के अभ्र! अपनी तृषित धरती को अमृत दो। बोध-स्रोतस्विनी की सदानीरा धारा सृष्टि को नहला दो। कृतार्थ कर दो जगत की चिर अभिलषित निर्वाण-पीठिका को! कुछ ही कदमों पर एक तपस्विनी का कुटीर तुम्हारी प्रतीक्षा में कब से मुक्त कपाट है। दो प्रवीण ब्राह्मण तुम्हारे संग चलकर पथ-दर्शन करेंगे। मैं वनदेवता तुम्हारा आह्वान कर रहा हूँ।
सिद्धार्थ: ओ ज्योतिर्मयी! कौन हो तुम? ओ तरल स्नेहा! कौन हो तुम?
तपस्विनी: वत्स! अभी मैं तुम्हारा वह पता हूँ, जिसे तुम नहीं जानते। मैं वह नेपथ्य हूँ जिसे तुम्हारी आँखें अभी देख नहीं पातीं। सुनो! मैं तुम्हारे जीवन के महाकाव्य की सरस पंक्ति हूँ। तुम मेरा परिचय स्वतः ही पा जाओगे जब कभीं कोमल कातर कामनाओं से तुम्हारा पद्मगात्र कलुषित होने लग जायेगा, जब क्षुद्र विजय-पराजय का हर्ष-विषाद तुम्हारे करुणा-कलित अंतर को तृषित कर देगा। मैं उस तपोदेश की आत्मा हूँ जहाँ अपावन अश्रु नहीं उगते। मैं उस शून्य की रत्नगर्भा धरित्री हूँ, जहाँ आलिंगन का सुख नहीं। उस निर्वेद की तटवासिनी हूँ जहाँ स्मृतियों का मेला नहीं लगता। तुम्हें तुम्हारी संपदा की खबर देने को ही इधर खींच लिया कि दिग्भ्रमित न होना।
सुनो सत्यसंध! तुम अनेकों बार इन नक्षत्र लोकों के यात्री रहे हो। सुनो बोधरूप! अगणित लोकों में तुम्हारे असंख्य परिचित तुम्हारे तेज-वलय में विलीन हो उठे हैं। मैं तुम्हारे अभिनंदन में ही खड़ी थी। निर्भय होकर आगे बढ़ो। बाधाओं की भीड़ मिलेगी- संगी मत बन जाना! अकेलेपन का बल पहचानना। मैं साथ रहूँगी। मैं तुम्हारे अनंत जीवन की तपस्या हूँ। मैं तुमसे कभी अलग नहीं हूँ। मेरा परिचय तो तुम्हें मिलेगा ही जब तुम परम-पुरुष के संकल्पों के साथ एकाकार हो जाओगे। फिर क्या रह जायेगा तुम्हारे लिये पाना। तुम्हें मेरा परिचय तब मिल जायेगा जब तुम मेरे सर्वरूप के महातीर्थ में निमज्जित हो जाओगे। मैं तुम्हारे पीछे लगी रहूँगी तुम्हारी सुदक्षिणा संगिनी। उठो, चलो!
यह लो, तुम्हारे श्रद्धालु उर, करुणार्द्र चित्त, विरक्त प्राण के बदले यह ज्योतियों की माला है। इसकी दिव्य सुरभि न तुम्हें थकने देगी, न भ्रमित होने देगी। सुनो! जो प्रतीत होता है, वह पूर्ण नहीं होता। चले चलो! विरमो मत!
अनुपम। एक भाषिक उपलब्धि।
तपस्विनी अद्भुत सृष्टि ।
फिर आता हूँ।
असाधारण शक्ति का गद्य। लेखनी प्रशस्त है, बांधती है, भाषा पठनीय है। आपको साधुवाद।
जहाँ भाव और भाषा इतनी सघन प्रतिस्पर्धा में
न्यस्त हों , ऐसा ब्लॉग अन्यत्र दुर्लभ है ..
पहले भी जिक्र कर चूका हूँ कि आपको पढ़ते हुए
जय शंकर प्रसाद जी को पढ़ने जैसा अनुभव होता है ..
क्या कहा जाय ..
………… '' ज्यों गूंगे मीठे फल को रस अंतरगत ही भावै ''
आभार .. .. ..
आपकी लेखनी असाधारण है…
भाषा-शिल्प अद्वितीय ..
बहुत सुन्दर..
जीवन के महाकाव्य की सरस पंक्ति …
तपस्विनी का परिचय …. जो सिद्धार्थ की मार्गदर्शिका होगी …
अद्भुत ….
बुद्ध बनने की जटिल प्रक्रिया की यह प्रस्तुति अनुपम अद्वितीय है ….!!
"सिद्धार्थ विमुग्ध हैं.."
और मै भी मुग्ध हूँ इस लेखनी पर..!
मुझे अमरेन्द्र जी की बात उधार चाहिए…"जहाँ भाव और भाषा इतनी सघन प्रतिस्पर्धा में
न्यस्त हों , ऐसा ब्लॉग अन्यत्र दुर्लभ है .."
हिमांशु भाई..मुझे गर्व है आपकी लेखनी पर..! overwhelmed सा हो जाता हूँ आपके ब्लॉग पे आता हूँ तो..सच्ची..! मेरी शुभकामनायें आपके सुलेखन के लिए…
Somebody should sprinkle tiny droplets of ink here.
हिन्दी से संस्कृत बन जाएगी। यहाँ ठहरे हुए सन्न से पसरे शांत सरोवर की सुन्दरता है। But very few will understand it. Dear, give the meaning of Sanskrit words.
I am remembering 'The Light of Asia' though here is a different touch. Kudos.
ये शमा जलती रहे।
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शानदार रही लखनऊ की ब्लॉगर्स मीट
नारी मुक्ति, अंध विश्वास, धर्म और विज्ञान।
लाजवाब और अद्भुत.
रामराम.
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ब्लोग चर्चा मुन्नभाई की
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अद्भुत.सरस,असाधारण,अनुपम लेखनी! अध्यात्म की यह यात्रा भी सुखद अनुभुति करा गई.
आभार इसके लिऎ आपका!
महावीर बी. सेमलानी "भारती"
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यह पढने के लिऎ यहा चटका लगाऎ
भाई वो बोल रयेला है…अरे सत्यानाशी ताऊ..मैने तेरा क्या बिगाडा था
हे प्रभु यह तेरापन्थ
मुम्बई-टाईगर
जहाँ भाव और भाषा इतनी सघन प्रतिस्पर्धा में
न्यस्त हों , ऐसा ब्लॉग अन्यत्र दुर्लभ है .
यहाँ तक कि कहानी तो पढ़ी सुनी थी, इसलिए थोड़ी बहुत पूर्वाग्रह थे, अब तो ज्ञान नैया है, और बस 'हिमांशु जी' खेवनहार. 🙂
नहीं कोई व्यक्तिक टिप्पणी नहीं, हो भी नहीं सकती इस तरह की पोस्ट पर. ये श्रृंखला खेवनहार.
NSD आदि में मंचन करने के बारे में क्या ख्याल है?