मुझे मौन होना है
तुम्हारे रूठने से नहीं,
तुम्हारे मचलने से नहीं,
अन्तर के कम्पनों से
सात्विक अनुराग के स्पन्दनों से ।
मेरा यह मौन
तुम्हारी पुण्यशाली वाक्-ज्योत्सना को
पीने का उपक्रम है,
स्वयं को अनन्त जीवन के भव्य प्रकाश में
लीन करने की आस है,
सुधि में प्रति-क्षण तल्लीन करने वाली
आसव-गंध है ।
अपने स्पन्दनों के संजीवन से
मेरे प्राणों में अमरत्व भरो,
अपने स्पन्दनों से निःसृत मौन से ही
छंदों और ऋचाओं से अलभ्य
’उसे’ ढूँढ़ने की लीक दो,
और मिट्टी की गंध-सा यह मौन
साकार कर दो चेतना में
कि युगों की जमी हुई काई हट जाय,
दृश्य हो शुद्ध चैतन्य !
दिनेश नन्दिनी डालमिया के एक गद्य-खण्ड से अनुप्रेरित
अंतर के कम्पनों से मौन होना…"उसे" ढूढने की लीक..!
इतना कुछ कैसे संप्रेषित कर लेते हैं..तात..!
मौन हूँ ..निशब्द.
मुझे मौन होना है
-बहुत गहन! वाह!
साकार कर दो चेतना में
कि युगों की जमी हुई काई हट जाय,
दृश्य हो शुद्ध चैतन्य !
waah…….behtreen prastuti ……….aatmavlokan ke prayas ki disha mein agrsar karti rachna.
इस मौन का क्या गौतम बुद्ध के मौन से कोई साम्य सम्बन्ध निकल सकता है? -यहाँ तो ऐसा मौन प्रतिवेदित /संवेदित है जो मुखरित भी नहीं होता लग रहा है बस अंतरानुभूति के गहन पाश में ही दम तोड़ता दिख रहा है –
इस मौन के बजाय तो रजनीश की वाचाल मुखरता ही ज्यादा ध्यानाकर्षण वाली थी .जब वे मौन हुए तो सारा सन्सार स्तब्ध हो कह पड़ा -अब मौन हुए रजनीश !
तनिक वाचाल बनिए आर्य -या फिर अपने मौन को ही और मुखर कीजिये -जो जन वाणी की अभिव्यक्ति बन जाय महज एक व्यष्टि वाणी नहीं. समष्टि वाणी कीअभिवयक्ति .
उठिए और कवि मौनता के पारम्परिक क्लैव्यता से बाहर आईये -वैसे भी वसंत की थाप तन मन पर झंकृत होने लगी है .वैलेंटायींन भी आन पहुंचा है .
भीतर जिसके कोलाहल हो बाहर कैसे घटता मौन
ह्रदय शुद्ध चैतन्य जिसका मुखरित हुआ उसी का मौन ….
इस रचना को पढ़कर कौन ना रह जाये मौन ….अद्भुत ….!!
मिट्टी की गंध-सा यह मौन
साकार कर दो चेतना में
कि युगों की जमी हुई काई हट जाय,
दृश्य हो शुद्ध चैतन्य !
atulya rachna hai ye…
मौन भी अभिव्यक्ति का माध्यम तो नही……?
बेहतरीन प्रस्तुति ।
आभार ।
बेहतरीन प्रस्तुति….
यह मौन नहीं ..मुखरित मौन है..!!
द्रष्टा बन गए हैं आप ..ऋचाओं से आपके शब्द कब का जमी काई हटा चुके हैं..
अब तो सब कुछ शुद्ध है ..और आप चैतन्य…!!!
मौन तो वही हो सकता है जिसे सत्य का ज्ञान हो जाय.
बुद्ध मौन हुए ..ओशो मौन हुए …और फिर इन महान आत्माओं ने जड़ता में चेतनता भरने का भरपूर प्रयास किया.मौन के बाद शुद्ध चैतन्य की ही अनुभूति होगी!.. ऐसा सुना है…
मेरी कामना है कि माँ सरस्वती आपकी पुकार सुन ले..और युगों की जमी काई मिट जाय.
…आपकी कविता से जो स्पंदन निःसृत हुआ..जो आनंद आया उसका वर्णन नहीं कर पाउँगा!…बधाई.
अगर आपके लिये "मौन" ये है! तो यह मौन नही तप्सया है!!……..बहुत ही सुन्दर भावो से सजी रचना…..आभार!!
http://kavyamanjusha.blogspot.com/
मेरा यह मौन
तुम्हारी पुण्यशाली वाक्-ज्योत्सना को
पीने का उपक्रम है….
khoobsoorat bhav-rchna.
अध्यात्मिकता…या प्रेम या दोनों ही?? आप तो स्थितिप्रज्ञ होने की राह पर जा रहे हैं, अथवा पहुँच चुके हैं.
यहाँ आना सुखद समीर का आनन्द लेना होता है। विलम्ब से आएँ तो और अच्छा।
गूँगे का गुड़ जैसी बात है।
@ अपने स्पन्दनों से निःसृत मौन से ही
छंदों और ऋचाओं से अलभ्य
’उसे’ ढूँढ़ने की लीक दो,
और मिट्टी की गंध-सा यह मौन
साकार कर दो चेतना में
कि युगों की जमी हुई काई हट जाय,
दृश्य हो शुद्ध चैतन्य !
मुग्ध कर दिए भैया! उस आह्लाद पूर्ण वाणी को क्या कहेंगे जो अनुभूति के बाद फूट पड़ती है?
अरविन्द जी की बात पर भी ध्यान दीजिए।
आपकी रचना पर मेरी कविता के कुछ शब्द
कैसी है अनुभूति कैसा है एहसास
मेरे अन्तस मे
तेरे सौरभ की
रजत किरनों का आभास
मेरी चेतना को बहाये जाता है
इस मौन मे तू है और मैं हूँ बस
बहुत सुन्दर लगी आपकी रचना
मेरी तृष्णाओ
मेरी स्पर्धाओ
मुझ से दूर जाओ
मन कर रहा क्रन्द
आत्मा मे सपन्दन्
उस मौन मे तुझे ढूँढता मन
आपकी कविता से बहुत से भाव मन मे उठने लगे है अधिक लिखूँगी तो बहुत हो जायेगा इस सुन्दर रचना के लिये धन्यवाद
मुझे मौन होना है
अन्तर के कम्पनों से
सात्विक अनुराग के स्पन्दनों से ।
प्रेम की इतनी निश्छल अनुभूति,शब्दों का इतना सुन्दर संयोजन
और उसमे रचे-बसे गहरे भाव ने मौन ही कर दिया सबको
मुखर को तो 'अभिधा','लक्षणा' व 'व्यंजना' थक गए हैं
समझाते – समझाते , पर वह भी तो मौन में जा कर समा जाता है ..
मौन को भी इतना मुखर हो कर समझाया आपने .. धन्यवाद !
bahut khub maerae maun ko meri prashansa hi smajhey
अद्भुत रचना!पसंद आई.
भरे बाज़ार में भी जब कोई गाहक नहीं मिलता
तो हीरे को भी जिंस-ऐ-रायगाँ कहना ही पड़ता है– J.N.AZAD
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