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अपने प्रेम-पत्र में यही तो लिखा मैंने….

Himanshu Pandey By Himanshu Pandey

“जीवन के रोयें रोयें कोमिलन के राग से कम्पित होने दो,विरह के अतिशय ज्वार कोठहरा दो कहीं अपने होठों पर,दिव्य…

मगर सूर्य को क्यूं लपेटा?

Himanshu Pandey By Himanshu Pandey

अपनी पिछली प्रविष्टि (हे सूर्य : कविता – कामाक्षीप्रसाद चट्टोपाध्याय) पर अरविन्द जी की टिप्पणी पढ़कर वैसे तो ठहर गया…

मास्ति वेंकटेश अय्यंगार : Masti Venkatesh Iyengar

गहन मानवतावाद के पोषक और मानव मात्र में अटूट आस्था रखने वाले कन्नड़ के प्रख्यात साहित्यकार डॉ० मास्ति वेंकटेश अय्यंगार…

विश्व पर्यावरण दिवस: सभ्यताएँ जंगलों का अनुसरण करती रही हैं

विश्व पर्यावरण दिवस पर अचानक ही एक श्लोक याद आ गया। श्लोक वृक्षों की जीवंत उपस्थिति और उनके शाश्वत मूल्य…