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पराजितों का उत्सव : एक आदिम सन्दर्भ -३

पराजितों का उत्सव : एक आदिम सन्दर्भ -१ पराजितों का उत्सव : एक आदिम सन्दर्भ -२ से आगे…. आदमी है ध्वस्त — उस अन्दर के अन्दर, के अन्दर, के अन्दर, के अन्दर के आदमी के हाथ । उस आदमी के…

Literary Classics, Ramyantar

पराजितों का उत्सव : एक आदिम सन्दर्भ -२

पिछली प्रविष्टि से आगे …. ना ! क़तई नहीं । आदमी कभी जुदा-जुदा नहीं होते । आदमी सब एक जैसे होते हैं – एक ही होते हैं, पूर्ण-सम्पूर्णतः — अन्दर के अन्दर, के अन्दर, के अन्दर तक, बाहर से अन्दर…

Literary Classics, Ramyantar

पराजितों का उत्सव : एक आदिम सन्दर्भ (पानू खोलिया)-१

अपने नाटक ’करुणावतार बुद्ध’ की अगली कड़ी जानबूझ कर प्रस्तुत नहीं कर रहा । कारण, ब्लॉग-जगत का मौलिक गुण जो किसी भी इतनी दीर्घ प्रविष्टि को निरन्तर पढ़ने का अभ्यस्त नहीं । पहले इस नाटक को एक निश्चित स्थान पर…

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कल की ना-ना तुम्हारी ….

कल की ना-ना तुम्हारी – मन सिहर गया, चित्त अस्थिर आगत के भय की धारणायें, कहीं उल्लास के दिन और रात झर न जायें फिर उलाहना – क्या यह प्रेम प्रहसन ? रही विक्षिप्त अंतः-बाह्य के निरीक्षण में व्यस्त, नहीं…

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मैं तो निकल पड़ा हूँ…..

मैं तो निकल पड़ा हूँ सुन्न एकांत-से मन के साथ जो प्रारब्ध के वातायनों से झाँक-झाँक मान-अपमान, ठाँव-कुठाँव, प्राप्ति-अप्राप्ति से आविष्ट जीवन को निरखता है … निकला तो अबेर से हूँ क्योंकि मन के उद्वेग के साथ अनुभव का ऊहापोह…

Hindi Ghazal, Ramyantar, Songs and Ghazals

जिन्दगी ज़हीन हो गयी..

जिन्दगी ज़हीन हो गयी मृत्यु अर्थहीन हो गयी । रूप बिंध गया अरूप-सा सृष्टि दृश्यहीन हो गयी । भाव का अभाव घुल गया भावना तल्लीन हो गयी । टूट गयी सहज बाँसुरी व्यथा तलफत मीन हो गयी । बाँध लूँ…

Ramyantar, Translated Works

मुझे देखो …

वहाँ देखो, एक पेंड़ है जगमगाता हुआ उसकी शाखो में चिराग फूलते हैं, मदहोश कर देने वाली गंध-सी रोशनी फैलती है चारों ओर, आइने-से हैं उसके तने जिनमें सच्चापन निरखता है हर शख़्स और अशआर की तरह हैं उसकी पत्तियाँ…

Ramyantar, Translated Works

एक दीया गीतों पर रख दो …

एक दिया गीतों पर रख दो, एक दिया जँह सुधियाँ सोयीं एक दिया उस पथ पर रख दो जिस पर हो अनुरागी कोई । एक दिया पनघट पर रख दो एक दिया बँसवट के पास एक दिया तालों में रख…