आओ चलो, दीप रखते हैं (कविता)
आओ चलो, दीप रखते हैं कविता जीवन के हर उस कोने…
Arattai – संदेश और संवाद माध्यमों का स्वदेशी संस्करण
आत्मनिर्भर भारत के गुंजित स्वर में प्रधानमंत्री के स्वदेशी अपनाने के…
आशीष त्रिपाठी का काव्य संग्रह शान्ति पर्व
शान्ति पर्व पढ़ गया। किसी पुस्तक को पढ़ कर चुपचाप मन…
नवागत प्रविष्टियाँ
रूपसी गले मिलो! कि कुरबक फूल उठे: वृक्ष दोहद-3
यूँ तो अनगिनत पुष्प-वृक्षों को मैंने जाना पहचाना नहीं, परन्तु वृक्ष दोहद के सन्दर्भ में कुरबक का नाम सुनकर मन…
फूलो अमलतास! सुन्दरियाँ थिरक उठी हैं: वृक्ष दोहद-2
स्वर्ण-पुष्प वृक्ष की याद क्यों न आये इस गर्मी में। कौन है ऐसा सिवाय इसके जो दुपहरी से उसकी कान्ति…
टिप्पणी अदृश्य होकर करते हैं हम …
आशीष जी की पोस्ट पढ़कर टिप्पणी नियंत्रण का हरबा-हथियार (मॉडरेशन) हमने भी लगाया ही था कि पहली टिप्पणी अज्ञात साहब की…
रमणियों की ठोकर से पुष्पित हुआ अशोक: वृक्ष दोहद-1
वृक्ष दोहद की संकल्पना के पीछे प्रकृति के साथ मनुष्य का वह रागात्मक संबंध है जिससे प्रेरित होकर अन्यान्य मानवीय…
हमारा जो है अपना आप(गीतांजलि का भावानुवाद)
He whom I enclose with my name is weepingin this dungeon. I am ever busy buildingthis wall and around; and…
यह हँसी कितनी पुरानी है?
हँसते हुए यह कभी नहीं सोचा था, कि यह हँसी कितनी पुरानी है और किसका अनुकरण कर मानव की हँसी…