आज सुबह एक कविता पढ़ी- कवि, प्रेमी और पक्षी विशेषज्ञ (Poet, Lover, Birdwatcher)। कविता ने बाँध लिया क्योंकि यह कमोबेश उन मान्यताओं या राहों की रूपरेखा तय करती है जिनसे कवि का कर्तव्य या उसका कवित्व उल्लेखनीय बनता है। कवित्व, प्रेम-कर्तव्य और पक्षी-अवलोकन को आपस में अंतर्संबंधित करते हुए इस कविता का कवि कवित्व को सजगता का पर्याय मानता है।
कवि की दृष्टि में कवि-धर्म रतजगे की तरह है, एक शाश्वत जागृति की भांति जिसका परिणाम अंततः कवित्व का मूल्यवान उपहार हुआ करता है। यह रतजगा पक्षी विशेषज्ञ की सजगता की भांति होना चाहिए, जो हर पल सावधान रहता है पक्षी की हर एक गतिविधि के लिए। कवि को भी हर पल, समय से आक्रांत हुए बिना, समय के प्रत्येक स्पंदन पर गहरी नजर रखनी चाहिए।
कवि इस सन्दर्भ में प्रेम-कर्तव्य (love-making) का साधर्म्य निरूपित करता है। उसकी दृष्टि में प्रेम-सम्बन्ध (courtship), पक्षी-अवलोकन (bird-watching) एवं कवित्व आपस में अंतर्सम्बंधित होते हैं। यह तीनों कर्म निष्क्रिय सजगता (passive alertness) से संपादित होते हैं। इनके लिए अनिश्चय (anxiety), घबराहट, शीघ्रता, आक्रामकता (aggression), या अत्यधिक क्रियाशीलता (hyperactivity) की कोई आवश्यकता नहीं। इन कर्मों में आप जितना ज्यादा परेशान या उत्तेजित होते हैं, उतनी ही छोटी आपकी प्राप्ति होती है। क्या ऐसा नहीं है कि जिसे आप प्रेम करते हैं, उसे प्रश्नावली मानकर उसकी खोजबीन नहीं करते बल्कि गहरी भावना से अभिभूत होकर उसे निरखते रहते हैं। यही निरखना प्रिय-पात्र के सम्पूर्ण समर्पण का वाहक बनता है।
अतः इस प्रकार के साधनात्मक धैर्य का ही पुरस्कार महनीय उपलब्धियां हो जाया करती हैं। फ़िर जो प्राप्त होता है- कवि की दृष्टि में- वह केवल अस्थि-चर्म नहीं, बल्कि है-
“………………myths of light
with darkness at the core .”
अंग्रेज़ी कविता के पिता निस्सीम इजीकेल
यह जिस कवि की कविता है, संयोग से इसी माह की चौबीस तारीख को उस कवि का जन्मदिन है। मैं बात आधुनिक भारतीय अंग्रेजी-कविता के पिता कहे जाने वाले निस्सीम ईजीकेल (Nissim Ezekiel) की कर रहा हूँ। निस्सीम ईजीकेल अपनी कविता में काव्य और जीवन का एकत्र संयोग करते हैं। वे मानव मन के गहरे अन्वेषी हैं।
मुंबई जैसे शहर को केन्द्र में रखकर निस्सीम महानगरीय कठिनाइयों, नगरीय जीवन के संघर्षों और मनुष्य के अकेलेपन व पहचान के आधुनिक संकट को अपनी कविताओं में सदैव व्यक्त करते हैं। पर इस अभिव्यक्ति में उनकी कविता उन पारंपरिक सूत्रों की तलाश भी करती चलती है जिनसे इन समस्याओं का हल ढूंढा जा सकता है। इस दृष्टि से वे पारंपरिक रूप से अपने को धार्मिक या नैतिक नहीं मानते, फ़िर भी वे गहरे अर्थ में अपने को धर्म और नैतिकता से प्रतिबद्ध पाते हैं।
इज़ीकेल की काव्य सर्जना
ईजीकेल की काव्य-सर्जना भिन्न शैलियों और भिन्न विषयों को लेकर विकसित होती हैं जिसमें महत्वपूर्ण है स्व-निदर्शन एवं स्व-परिष्कार के निमित्त लिखी गयी काव्योक्तियां एवं व्यंग्यात्मक वक्तव्य। ईजीकेल कवि की संतुष्टि की संकल्पना देते हैं और कहते हैं-
मैं कवि की संतुष्टि को ‘अवसरों’ के रूप में नहीं देखता। मैं मानता हूँ कि यह एक मनःस्थिति है जो इस अहसास से प्राप्त होती है कि मैं उसी दिशा में जा रहा हूँ, जिधर जाना चाहता था।
Nissim Ezekiel- In an Interview with Dr. Ranveer Rangra
ईजीकेल अपनी कविताओं में सधी हुई भाषा का प्रयोग करते हैं- भली भांति नियोजित, कल्पना प्रतीकों से सजी हुई। उनकी भाषा उसी प्रकार अपने आप को पारंपरिक भाषा की व्यंजनात्मकता से अलग करती है जिस प्रकार उनका गहनतम मानस अपनी अभिव्यक्ति में उस प्रार्थना का रूप धारण करता है जो पारंपरिक धार्मिक प्रार्थना से भिन्न है। ईजीकेल की प्रार्थना का स्वरूप देखिये और उसे गुनिये, गुनगुनाइए-
यदि मैं प्रार्थना कर सकता
तो मेरी याचना का सार होता:
शान्ति
स्वस्थ मन
भीतरी असत की समाप्ति
और हर चुम्बन में मात्र प्रेम।
(डा०रणवीर रांग्रा का अनुवाद। उनकी पुस्तक ‘भारतीय साहित्यकारों से साक्षात्कार’ से साभार)
बताना जरूरी है: अपनी क्षुद्र मति- जो अंग्रेजी का अल्प-ज्ञान रखती है- के साहस से यह कविता पढ़ी थी। जो अर्थ निकाल सका, उसे ही आधार बनाया है।
thanks for giving the link of this poem
यदि मैं प्रार्थना कर सकता
तो मेरी याचना का सार होता :
शान्ति
स्वस्थ मन
भीतरी असत की समाप्ति
और हर चुम्बन में मात्र प्रेम
———–
यही मानव धर्म कहता है! वह किसी भी नाम से जाना जाये!
बहुत आनंद आया पढ़ते हुए -आपकी प्रस्तुति प्रभावित करती है -एक जगह “यह तीनों कर्म निष्क्रिय सजगता (passive alertness) से संपादित होते हैं ।”- यहाँ कवि विरक्तता /उदासीनता /तटस्थता की जगह एक नए विचार भाव को अभिव्यक्त करत्ता है .कवि की एक रचना आज भी मुझे याद है -द नाईट आफ स्कार्पियन ! मिल जाए तो पढ़ें यदि अभी तक न पढी हो तो !
हिमांशु जी,
आप के मध्यम से संभवत: पहली बार नेट पर रांग्रा जी के नाम का उल्लेख हुआ है.धन्यवाद।
विदेशीभाषासाहित्य का अध्ययन व तुलनात्मकता जहाँ एक मानवीय सम्वेदना की पुष्टि करती है, वहीं समान मानवीय मूल्यों की स्थापना की भी।
आपने अच्छा लेख दिया है आपके अध्ययन को दर्शाता है आपका लेखन।
ध्न्यवाद
I usually don’t leave remarks at blogs, but your post inspired me to comment on your blog. Thank you for sharing!