(Photo credit: soul-nectar) |
कुछ अभीप्सित है
तुम्हारे सामने आ खड़ा हूँ
याचना के शब्द नहीं हैं
ना ही कोई सार्थक तत्त्व है
कुछ कहने के लिए तुमसे।
यहाँ तो कतार है
याचकों, आकांक्षियों की,
सब समग्रता से अपनी कहनी
कहे जा रहे हैं
न तो मेरी तुम्हारे मन्दिर में
कुछ कहने की सामर्थ्य है
ना ही कुछ करने की,
तुम्हारे श्रृंगार में
एक भी अंश मेरा नहीं,
फ़िर भी आ खड़ा हूँ।
क्या स्नेह न दोगे,
स्वीकार न करोगे मेरा अभीप्सित ?
अनवरत संघर्षों में उलझा मेरा जीवन
तुम्हारे सामने ही तो व्यक्त है,
हर मौन, संवाद होकर प्रस्फुटित है,
और मैं अकिंचन
तुम्हारे सामने ही तो व्यक्त हूँ।
तुम्हारे ब्लॉग पर
आ खडा हुआ हूँ
क्या टिप्पणी न
लोगे ?
लेलो भाई लेलो
आया हूँ बहुत दूर से
ठंड में ठिठुरता !
ने कहा…
भाई बेहद अच्छी प्रार्थना कर डाली आपने………अब उसे ना भी सुनानी थी तो सुनेगा….बाकि मेरे ब्लॉग पर आप आए थे…धन्यवाद……..नीचे की तीन पोस्टों से मेरा मतलब नीचे की पोस्टों से ही है…यानि सात जनवरी की तीनों पोस्टें….!!
तुम्हारे सामने ही तो व्यक्त है,
हर मौन, संवाद होकर प्रस्फुटित है,
और मैं अकिंचन
तुम्हारे सामने ही तो व्यक्त हूँ।
” सम्वेदनशील भावनाओ की सुंदर अभिव्यक्ति…”
Regards
हर मौन, संवाद होकर प्रस्फुटित है,
और मैं अकिंचन
तुम्हारे सामने ही तो व्यक्त हूँ।
अर्थ गाम्भीर्य लिए शब्द !
हर मौन, संवाद होकर प्रस्फुटित है,
और मैं अकिंचन
तुम्हारे सामने ही तो व्यक्त हूँ।
अच्छा लगा पढ़कर!