

आत्मा और उसके साथी मौत के गांव गये । आत्मा ने पहले चमगादड़ को टोह लेने के लिये भेजा। मौत की कुटिया की छत के एक कोने में चमगादड़ लटक गया। किसी ने उसे देखा नहीं। मृत्यु अपने सिपाहियों से कह रही थी, “मैं आकाश में बादल लाउंगी, गाज, तुम मेरे घर पर, जिसमें आत्मा ठहरी हुई होगी, कूद पड़ना और सर्वनाश कर देना।” मौत के सिपाही मान गये और तितर-बितर हो गये।
गांव में पहुंचने पर आत्मा का खूब स्वागत किया गया। मृत्यु ने अपना घर खाली कर दिया ताकि अतिथि को हर प्रकार का आराम मिल सके। चमगादड़ आकाश पर नजरें गडा़ये हुए था। उसने बादल को अचानक आते हुए देख चिल्लाकर कहा, “इसी समय चले जाओ! भागो।”
आत्मा अपने सैनिकों के साथ एकदम भाग निकली। वे अभी अधिक दूर नहीं गये थे कि मृत्यु के घर पर गाज गिरी और घर पूरी तरह बरबाद हो गया। मृत्यु ने उल्लासित होकर कहा, “मैंने आत्मा को मार डाला।” उसने अपने सैनिकों को इकट्ठा किया और ढोल पिटवाये। “वह कहती थी उसको मारा नहीं जा सकता।”
उसी समय आत्मा के गांव से विजय के नगाड़े बजने का स्वर सुनायी दिया। मौत ने अपनी फौज के साथ एकदम कूच किया और आत्मा ने सुअरों और चींटीखोरों के रास्ते में गढ़े और खंदकें खोदने का आदेश दिया। मृत्यु अपने सैनिकों सहित गड्ढों में गिर पड़ी और आक्रमण न कर सकी। तब से आत्मा अमर है।
कथा : ’सारिका’ १५ अक्टूबर के अंक से साभार
चित्र : http://hypergraphian.blogspot.com
विचित्र कुछ कुछ मिथकों की तर्ज पर !
अच्छी है पहली बार पढ़ा ।
इस मिथक को पहली बार जाना. अब भाई मिथक है लॉजिक कहा से पायेंगे. आभार.
रोचक एवं प्रेरक।
कभी कभी बहुत फिलोसफिकल हो जाते हो……कथा तसाली से खामोशी से पढने जैसी है
काफ़ी रोचक लगी यह जानकारी.
रामराम.
अच्छा लगा यह पढ़ना।
badhia katha himanshu ji, sunane ke liye sadhuwaad.
interesting…mythak hote hi aise hain
आप की यह कहानी शायद इस ओर इशारा करती है कि आत्मा तो अमर है फ़िर मोत से केसा डर, धन्यवाद
गीता का ज्ञान कहानी कि शक्ल मे बहुत अच्छा लगा ।