छैल चिकनियां छटकत रहलन
झार के अद्धी ढाका
केसर के संग लप्पा मारत
रहलन जम के काका,
लगत रहल गुलाल जब माथे
खिलल रहल तब चोला।
होलकी गड़तय करत रहल सब
फगुआ क तइयारी
टेसू के रंग से भर-भर के
चलत रहल पिचकारी,
अब तऽ सब फुटपाथ बइठके
झोरिहैं चउचक छोला।
होत रहल सतरंगी अंगिया
जुटत रहल जब टोली
जमुना जुम्मन हिलमिल के
खेलत रहलन हऽ होली
आज तऽ सब सीटे वाले
देखात हउवन बड़बोला।
आर पार सब होत रहल
पैदल बुढ़वा मंगल में
मैना राउरवी तान लड़ावत
रहलिन इऽ दंगल में,
सोच-सोच के ऊ जुग कऽ
हौ दिल पर पड़ल फफोला।
बहुत सुंदर रचना होली पर!
होली पर हार्दिक शुभकामनाएँ।
होली कैसी हो..ली , जैसी भी हो..ली – हैप्पी होली !!!
होली की शुभकामनाओं सहित!!!
प्राइमरी का मास्टर
फतेहपुर
सुन्दर! मजेदार! चकाचक बनारसी की भी कुछ कवितायें पढ़वाइये!
Holi ki hardik shubkamnayen.
वाह, बनारस की खाक भी मजेदार है!
होली की ढेरो शुभकामनाएं …
अरे हिमाशूं भाईया बडी सुंदर ओर रोचक कविता कही .
धन्यवाद.
आपको और आपके परिवार को होली की रंग-बिरंगी ओर बहुत बधाई।बुरा न मानो होली है। होली है जी होली है
बहुत सुंदर. होली की घणी रामराम.
वाह मजा लगाई देहेले हो !
वाह, पढ़कर मजा आ गया।
घुघूती बासूती