आज एन०वी० कृष्ण वारियर (N. V. Krishna Warrier) का जन्मदिवस है। साहित्य अकादेमी पुरस्कार से सम्मानित एन०वी० कृष्ण वारियर मलयालम साहित्य के बहुप्रतिष्ठित और समादृत कवि-साहित्यकार हैं। हिन्दी में छपे एक साक्षात्कार से इस कवि को पहले पहल जाना, और उसमें छपी इनकी कविताओं के अंशों ने भीतर तक प्रभावित किया मुझे। आज इस कवि का स्मरण करते हुए इनकी कविता सूरज की मृत्यु का वही अंश प्रस्तुत आपके लिये भी।
सूरज की मृत्यु कविता का एक अंश
यह हिन्दी अनुवाद किसने किया, यह वास्तविक रूप से ज्ञात नहीं। परंतु इस कविता को लिया है डॉ० रणवीर रांग्रा द्वारा लिये गये उनके साक्षात्कार से। अनुवाद शायद रांग्रा जी का ही हो।
हमारा सूरज क्षितिज पर उतरता जा रहा था
लेकिन हमारी क्षमा अस्त हो चुकी थी
हमने सूरज को गोली मार कर गिरा दिया
समुन्दर लाल हो गया
पल भर के लिये सिर्फ
फिर वह काला हो गया
आकाश काला हो गया
पृथ्वी काली हो गयी
कालिमा घनी होती रही
अब भी वह घनी होती ही रहती है
सूरज में जो मरा वह क्या था ?
वह हमारी रोशनी थी
हमारी मानवता थी।
एन०वी० कृष्ण वारियर : परिचय
जन्म: 13 मई, 1916 – नेरुविश्शेरि, जिला त्रिचूर (केरल);
शिक्षा: साहित्य शिरोमणि, एम०ए० एम० लिट०;
पुरस्कार/सम्मान: साहित्य अकादेमी पुरस्कार-1979, सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार-1971 एवं अन्य।
प्रमुख कृतियाँ: नीटा कवितगल (1951), कुरेक्कुतिनीनता कवितगल (1951), कोच्चुतोम्मन (1955), गांधीय गौडसेय (1967), वल्लतोलिंट काव्य शिल्पं (1977), ए हिस्ट्री ऑफ मलयालम मीटर (1978), आदि।
अन्य: ’मातृभूमि’ का सम्पादन (1950-1968), संस्थापक निदेशक: केरल राज्यभाषा संस्थान (1968-1975), ’कुंकुम’ साप्ताहिक के मुख्य सम्पादक, इत्यादि।
निधन: 12 अक्टूबर, 1989
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श्री एन०वी० कृष्ण वारियर को जन्मदिवस की बधाई और आपका आभार इनकी यह कविता पढवाने के लिये.
रामराम.
गम्भीर चिन्तन। बधाई।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
एन०वी० कृष्ण वारियर से परिचय के लिए आभार !
आपने वारियर जी से परिचय कराया, बहुत धन्यवाद।
कविता में अवसाद है या मुझे ही लग रहा है। एक कोण से देखें तो रोज ही सूर्य पुनर्जन्म पाता है।
आपने याद दिलाया इस महान विभूति के जन्म दिवस का. हमारे पुरखे उसी गाँव के थे.
आभार इनकी यह कविता पढवाने के लिये.
मलयालम के इस साहित्यकार को आपने याद किया और हमें भी इनकी याद दिलाई, इसके लिए बहुत धन्यवाद।
सूरज में जो मरा वह क्या था ?
वह हमारी रोशनी थी
हमारी मानवता थी ।”
लेकिन फिर ही हम मानव बनाते है !