मैं सहजता की सुरीली बाँसुरी हूँ
घनी दुश्वारियाँ हमको बजा लें ।
मैं अनोखी टीस हूँ अनुभूति की
कहो पाषाण से हमको सजा लें ।
मैं झिझक हूँ, हास हूँ, मनुहार हूँ
प्रणय के राग में इनका मजा लें ।
आइने में शक़्ल जो अपनी दिखी है
उसी को वस्तुतः अपना बना लें ।
मिलन पहला, गले मिलना जरूरी है ?
जरा ठहरो ! तनिक हम भी लजा लें ।
क्या बात है भाई, बहुत उम्दा!!
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जरा ठहरो ! तनिक हम भी लजा लें ।
बहुत नाज़ुक एहसास — बेहद खूबसूरत
लो जी आप तनिक मजा ही लेना चाहते है …….और हम पूरी मौज?
सॉरी !! मौज में तो अपने शुकुल जी का कॉपीराइट है!!!
नया रंग रोगन!! पूरे ब्लॉग का करवाया है ; दीपावली के मद्देनजर !!
NO IMAGE ? अखर रहा है !!!!
एडिट करके कोई न कोई इमेज डाल दें!
प्रत्येक बच्चे के साथ इस विश्वास के आधार पर काम करे कि
गेयता छू गई। टकसाली सरल हिन्दी, पूरे प्रवाह में ! हिन्दी काव्यधारा के कई आन्दोलन आप समेटे हुए हैं। दर्शन कराते रहते हैं।
अगर जगजीत सिंह इन्हें गाएं तो कैसा हो – सम्पर्क करिए न।
इसे हिन्दी गज़ल तो कह सकते हैं?
___
देखिए मैंने जो कहा था उसकी तसदीक मास्टर साहब भी कर रहे हैं। अब तो अवश्य ध्यान दीजिए। कमल का पुष्प बहुत अच्छा है। मैंने डेस्कटॉप पर सजा दिया है।
द्वैत भी है मगर अद्वैत की अनंत चाह !
आइने में शक़्ल जो अपनी दिखी है
उसी को वस्तुतः अपना बना लें ।
बहुत खूब ..अलग से लिखी है आपने यह बहुत पसंद आई शुक्रिया
आइने में शक़्ल जो अपनी दिखी है
उसी को वस्तुतः अपना बना लें ।
मिलन पहला, गले मिलना जरूरी है ?
जरा ठहरो ! तनिक हम भी लजा लें ।
bahut bahut khubsurat baat keh di,sunder rachana aur kamal bhi sunder.
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति है बधाई
आइने में शक़्ल जो अपनी दिखी है
उसी को वस्तुतः अपना बना लें ।
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति है बधाई
सुन्दर्।बहुत सुन्दर्।
behtreen bhav …….adbhut rang
मैं सहजता की सुरीली बाँसुरी हूँ
घनी दुश्वारियाँ हमको बजा लें ।
bahut khoob..
आनंदम् आनंदम्! यहाँ अलग ही रंग नजर आया आप का।
जय हो। क्या अदा है इन पंक्तियों में:
मिलन पहला, गले मिलना जरूरी है ?
जरा ठहरो ! तनिक हम भी लजा लें ।
लय-सुर-ताल-कलरव-गुंजन-झंकृत स्वर
बधाई हो ।
अति सुंदरम, बहुत अच्छी
वाह ! बहुत सुन्दर !
अंतिम दो लाईने… वाह !
bahut sundar hai sahajataa ki bansuri bajaate rahiye!!
मिलन पहला, गले मिलना जरूरी है ?
जरा ठहरो ! तनिक हम भी लजा लें ।
अनायास ही मुस्कुराने को प्रेरित करती पंक्तियाँ…
बहुत ही सुन्दर…..आपकी रचनाओं पर टिपण्णी करना आसान नहीं होता…
अहा हिमांशु जी….आहहा…अरे लूट लिया है आपने हमें अपने इस अनूठे अंदाज़ से श्रीमन…भई ग़ज़ल का ऐसा कोमल चटकीला रंग पहले न देखा।
तनिक हम भी लजा लें पे तो…उफ़्फ़्फ़…बस उफ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़!!!
वाह वाह जी, अतिसुंदर,,, यहां से गुजर रहा था, आपकी पंक्तियों को पढ कुछ लिख गया…॥
भरा लोटा लिये, बिन लुटे बैठा है
प्यास ले ले, क्यू न कुछ कजा ले … प्यास