Photo: Devian Art(Gigicerisier) मैंने चंद्र को देखा उसकी समस्त किरणों में तुम ही दिखाई पड़े मैंने नदी को देखा उसकी धारा में तुम्हारी ही छवि प्रवाहित हो रही थी मैंने फूल देखा फूल की हर पंखुड़ी पर तुम्हारा ही चेहरा…
आज का मनुष्य यह भली भाँति समझता है कि उसकी सफलता के मूल में वह सद्धर्म (चाटुकारिता) है, जिसे निभाकर वह न केवल स्वतः को समृद्धि और सुख प्रदान करता है, बल्कि दूसरे की महत्वाकांक्षा व उसके इष्ट को भी…
मैं अकेला खड़ा हूँ और तुम्हारे आँसुओं की धाराएँ घेर रही हैं मुझे , कुछ ही क्षणों में यह पास आ गयी हैं एकदम , शून्य हो गया है मेरा अस्तित्व बचने की कोई आशा ही नहीं रही, मैं हो…
प्रातः काल है। पलकें पसारे परिसर का झिलमिल आकाश और उसका विस्तार देख रहा हूँ। आकाश और धरती कुहासे की मखमली चादर में लिपटे शांत पड़े हैं। नन्हा सूरज भी अभी ऊँघ रहा है। मैं हवा से अंग छिपाए परिसर…
(Photo credit: soul-nectar) कुछ अभीप्सित है तुम्हारे सामने आ खड़ा हूँ याचना के शब्द नहीं हैं ना ही कोई सार्थक तत्त्व है कुछ कहने के लिए तुमसे। यहाँ तो कतार है याचकों, आकांक्षियों की, सब समग्रता से अपनी कहनी कहे…
आलोचना प्रत्यालोचना एक ऐसी विध्वंसक बयार है जो जल्दी टिकने नहीं देती। प्रायः संसार में इसके आदान कम, प्रदान की उपस्थिति ज्यादा देखी जाती है। मेरे जीवन के क्षण इस बयार में बहुत बार विचलित हुए हैं। अभी कल की…
प्रेम के अनेकानेक चित्र साहित्य में बहुविधि चित्रित हैं। इन चित्रों में सर्वाधिक उल्लेख्य प्रेम की असफलता के चित्र हैं। मनोवैज्ञानिक दृष्टि से प्रेम की असफलता एवं इस असफलता से उत्पन क्रिया-प्रतिक्रया पर काफी विचार किया जा सकता है, पर…
मैं जिधर भी चलूँ मैं जानता हूँ कि राह सारी तुम्हारी ही है, पर यह मेरा अकिंचन भाव ही है कि मैं नहीं चुन पा रहा हूँ अपनी राह। मैंने बार-बार राह की टोह ली पर चला रंच भर भी…
एक दिन ब्रह्मा मिल जाते तो उनसे पूछता कुछ प्रश्न और अपनी जिज्ञासा शांत करता कि क्यों नहीं पहुंचती उन तक किसी की चीख? उनसे पूछता कि जिसका तना मजेदार, खूब रसभरा है फलदार क्यों नहीं हो गयी वह ईख…
कल मेरे पास के घर की वृद्धा माँ को वृद्धाश्रम (Old-age Home) भेंज दिया गया। याद आ गया कुछ माह पहले का अपना वृद्धाश्रम-भ्रमण। गया था यूँ ही टहलते-टहलते अपने जोधपुर प्रवास के दौरान। सोचा था देवालय जैसा होगा। आँखें…