आजकल मुझे हंसी बहुत आती है, सो आज मैं फ़िर हँसा। अब ‘ज्ञान जी’ की प्रविष्टियों का ‘स्मित हास’, ‘ताऊ’ की प्रविष्टियों का ‘विहसित हास’, आलोक पुराणिक की प्रविष्टियों का ‘अवहसित हास’ भी बार-बार मुझे मेरी हंसी की याद दिला देता है। अभी कुछ दिनों पहले मुझे निर्लज्जों ने हंसा दिया– वह भी तीन बार।
आज मैं एक बार फ़िर हंसा। आज एक स्थितप्रज्ञ ने हंसा दिया। ‘आशुतोष ‘ का एक लेख ‘दैनिक हिन्दुस्तान’ में पढ़ा। उन्होंने टी०वी० चैनलों के ख़िलाफ़ कंपेन के खिलाफ कुछ लिखा है। यद्यपि वो लिखना नहीं चाहते थे मुंबई घटना या उसकी छवि घटनाओं पर, परन्तु टी०वी० चैनलों के खिलाफ दुष्प्रचार ने उनका विचार ही बदल दिया। तो समझ रहे हैं न कि आतंकी घटनाओं पर बेवजह न लिखने की उनकी दृढ़ता सात्विक श्रद्धा की नहीं, कूटनीति की है। यह आत्मसमर्पण नहीं, पूर्वसमर्पण है, वशीकरण है।
आशुतोष अपने लेख में टी० वी० चैनलों की आतंकवादी घटनाओं की आत्यंतिक कवरेज को सही ठहराते है- लेख की शुरुआत ही औत्सुक्यपूर्ण करते हैं, बिल्कुल कहानी की तरह। उत्सुक होकर पढ़ने लगता हूँ, मगर एक पैराग्राफ के बाद लगता है कि आशुतोष बस भावात्मक प्रवृत्ति के वशीभूत होकर लिख रहे हैं। चूंकि जनता ने मीडिया को संवेदनहीन करार दिया था तो आशुतोष को बताना था कि संवेदना के किस झुटपुटे में उनकी खबरनवीसी आँखें खोलती है? वे भावनात्मक खाका खींचते हैं कवरेज प्रक्रिया का। आशुतोष बताना चाहते हैं पूरे लेख में कि हमारे चैनल्स ने वस्तुतः छद्मता का आवरण हटाया, चहरे बेनकाब किए, वास्तविकता प्रदर्शित की, नेताओं का सच दिखाया और जनता के आक्रोश को अभिव्यक्ति दी।
पर मैं इसे मान नहीं पाता। मुझे यह आत्म प्रशंसा लगाने लगती है। मैं बिदक जाता हूँ। वे गृह मंत्रालय में विशेष सचिव एम्०एल० कुमावत और एनएसजी के डायरेक्टर जनरल जे०के०दत्त की तारीफ के प्रमाण पत्र दिखाते हैं – कि टीवी चैनलों ने जिम्मेदारी से काम किया है। उन्हें पूरी जन-अभिव्यक्ति, अन्य उक्ति-सन्दर्भ ख़याल में नहीं आते। कोई कहे मैं विद्वान हूँ – यही उपहास योग्य है; परन्तु कोई इस विद्वता का विशेषण सहित उल्लेख करे- तो मुझे यह प्रदर्शन मालूम पङता है। ऊहा से काम लेकर भाव स्वाभाविकता खो बैठता है। एक प्रलाप भाव के आवेश में होता है जिसे आप रोक नहीं सके तो हम क्षमा भी कर देते हैं, परन्तु जहाँ आप यत्न करके संवारते हैं वहाँ तो हम तिरस्कार भी कर देंगे, हंसेगे भी। आत्म प्रशंसा आत्म-विडम्बना सी मालूम होती है। आप अपना ही caricature (अवहास-चित्रण) कर बैठते हैं।
आशुतोष टी०वी० की शक्ति का ग्राफ बनाते हैं , वे यह आरोप झुठलाते हैं कि राजनीतिक तंत्र को डिसक्रेडिट करने की मुहीम टी०वी० कर रहा है ; वे गेट वे ऑफ़ इंडिया की लाखों की भीड़ को आतंकवाद की स्वाभाविक प्रतिक्रया नहीं , टी०वी० की शक्ति का प्रतीक बताते हैं, आदि। वे मीडिया को अपने कर्म की और प्रवृत्त दिखाते हैं। परन्तु हर बात उनके तर्कपूर्ण आश्वासनों में मुझे मीडिया के उत्तरदायित्व की एवमेवता (जैसे हैं बस वही और वैसे बने रहें) दिखाई पड़ती है।
एक बात कह दूँ कि मीडिया के ‘कोऊ नृप होय हमें का हानि’ (अर्थात घटे कुछ भी, ख़बर तो बनेगी ही) के एवमेव कौशल ने मीडिया के प्रति हमारे मन में संतोष या उदासीनता (Indifference) का भाव भर दिया है। ऐसा नहीं है कि यह Indifference हृदय की निष्पक्षता से पैदा हुआ है, बल्कि यह ‘अपने हुए बेगाने’ के अनुभव से जो चोट पहुँची है उसी से उत्पन्न हुआ है।
आशुतोष ! क्या आप नहीं जानते कि राग की निस्सारता से द्वेष नहीं उत्पन्न होता, विरक्ति हो जाती है ।
A blogger since 2008. A teacher since 2010, A father since 2010. Reading, Writing poetry, Listening Music completes me. Internet makes me ready. Trying to learn graphics, animation and video making to serve my needs.
वे गृह मंत्रालय में विशेष सचिव एम्०एल० कुमावत और एनएसजी के डायरेक्टर जनरल जे०के०दत्त की तारीफ के प्रमाण पत्र दिखाते हैं ——– आपके पास टीवी का कैमरा हो तो ऐसे प्रमाणपत्र झौआ भर मिलते हैं। और झौआ में भरने वाले गोबर से ज्यादा उनकी वैल्यू न आंकनी चाहिये!
लेख पर आपके विचार बिकुल सही हैं. ज्यादातर मीडिया वाले स्पिन डॉक्टर हैं.
सही कहा है आपने एवमेव सः just त्राहिमामम् करोति.
and nothing.
लेकिन हिमांशु जी, मैं तो विद्वान् हूँ.
ब्लॉग्स पण्डित – ( आओ सीखें ब्लॉग बनाना, सजाना और ब्लॉग से कमाना )
वे गृह मंत्रालय में विशेष सचिव एम्०एल० कुमावत और एनएसजी के डायरेक्टर जनरल जे०के०दत्त की तारीफ के प्रमाण पत्र दिखाते हैं
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आपके पास टीवी का कैमरा हो तो ऐसे प्रमाणपत्र झौआ भर मिलते हैं। और झौआ में भरने वाले गोबर से ज्यादा उनकी वैल्यू न आंकनी चाहिये!
बहुत सटीक कहा आप ने
धन्यवाद
सही कहा आपने. मीडिया की यही दोहरी नीति अच्छी नही लगती.
ध्न्यवाद.