मैं सपनों का फेरीवाला, मुझसे सपन खरीदोगे क्या?
यह सपने जो चला बेचने, सब तेरे ही दिए हुए हैं,
इन सपनों के चित्र तुम्हारी यादों से ही रंगे हुए हैं;
मैं प्रिय-सुख ही चुनने वाला,मुझसे चयन खरीदोगे क्या?
कहाँ कहाँ के चक्कर करता द्वार तुम्हारे आ पाया हूँ
जहाँ जहाँ भी गया खोजते, वहीं गया मैं भरमाया हूँ;
मैं स्मृति में रोने वाला, मुझसे रुदन खरीदोगे क्या?
लो तुम्हें समर्पित करता हूँ यह स्वप्न बिचारे, बुरे-भले
तुमको ही इन्हें सजाना है ले लो इनको बिन दाम भले;
मैं जिनसे स्वप्न देखता आया, मुझसे वह नयन खरीदोगे क्या?
यह कविता प्रेमी द्वारा प्रेमिका को लिखे गए प्रेमपत्रों का काव्यानुवाद है। ऐसी अनेकों प्रेमिल प्रविष्टियाँ ब्लॉग पर प्रकाशित हैं।
nice to read .
कहाँ कहाँ के चक्कर करता द्वार तुम्हारे आ पाया हूँ
जहाँ जहाँ भी गया खोजते, वहीं गया मैं भरमाया हूँ ;
मैं स्मृति में रोने वाला, मुझसे रुदन खरीदोगे क्या ?
bahut sunder
सुन्दर रचना है।बधाई।
सुंदर रचना. हमें एक पुराना गीत याद आ रहा है “सपनों का सौदागर आया, लेलो ये सपने लेलो”.
शायद राज कपूर ने गया था.
मैं स्मृति में रोने वाला, मुझसे रुदन खरीदोगे क्या ?
क्या बात है भाई…वाह…वा…बहुत खूबसूरत शब्द और भाव…जिंदाबाद.
नीरज
मैं जिनसे स्वप्न देखता आया, मुझसे वह नयन खरीदोगे क्या ?भाई मान गये, जान डाल दि आप ने अपने शव्दो मै.बहुत खुब.
धन्यवाद
सार्थकता झलकती है!
मैं सपनों का फेरीवाला, मुझसे सपन खरीदोगे क्या ?
यह सपने जो चला बेचने, सब तेरे ही दिए हुए हैं,
इन सपनों के चित्र तुम्हारी यादों से ही रंगे हुए हैं;
मैं प्रिय-सुख ही चुनने वाला,मुझसे चयन खरीदोगे क्या ?
बहुत ही बढ़िया …….क्या बढ़िया ख्याल और प्रस्तुति……
हिमांशु भाई ,
जब इश्वर से उत्तर मिलना बंद हो जाए तो प्रश्नों का ही सहारा मात्र रह जाता है
– आशुतोष
“मैं प्रिय-सुख ही चुनने वाला,मुझसे चयन खरीदोगे क्या ?”
“मैं स्मृति में रोने वाला, मुझसे रुदन खरीदोगे क्या ?”
समझ में नही आया …..
ni:sandeh ek utkrisht rachnao ka sangam hai aapke blogs par.
ye meri khushnasiibi ki aap jaisa rachnakaar ne mere bikhre hue lafzo ko padha .
rahi baat ..Tanhaai se itne pyar ki to bas itna hi kahungaa ki aap jaisa koi ..sapno ka feri vala jo nahi mila aaj tak.
aapse milkar khushi huii