सम्हलो कि चूक पहली इस बार हो न जाये
सब जीत ही तुम्हारी कहीं हार हो न जाये।
हर पग सम्हल के रखना बाहर हवा विषैली
नाजुक है बुद्धि तेरी बीमार हो न जाये।
अनुकूल कौन-सा तुम मौका तलाशते हो
जागो, कहीं तुम्हारी भी पुकार हो न जाये।
हर रोज जिन्दगी को रखना चटक सुगंधित
गत माह का पुराना अखबार हो न जाये।
खोना न होश, दौड़े जिस घर में जा रहे हो
तुम्हें देख बन्द उसका कहीं द्वार हो न जाये।
हाँ ये सारे डर तो हैं -सावधान रहना होगा क्या ?
अच्छी ग़ज़ल,बधाईयाँ !
खोना न होश, दौड़े जिस घर में जा रहे हो
तुम्हें देख बन्द उसका कहीं द्वार हो न जाये
वाह हिमांशु अंकल, आपने तो बडे पते की बात कही.
खोना न होश, दौड़े जिस घर में जा रहे हो
तुम्हें देख बन्द उसका कहीं द्वार हो न जाये ।
……….सुंदर प्रभावशाली पंक्तियाँ।
हर रोज जिन्दगी को रखना चटक सुगंधित
गत माह का पुराना अखबार हो न जाये ।
लाजवाब शेर है………..
और ग़ज़ल तो पूरी ही khoobsoorat है
खोना न होश, दौड़े जिस घर में जा रहे हो
तुम्हें देख बन्द उसका कहीं द्वार हो न जाये । aajkal yahi to ho raha hai….satya hai…
हर रोज जिन्दगी को रखना चटक सुगंधित
गत माह का पुराना अखबार हो न जाये ।
बहुत अच्छा कहा है…ग़ज़ल में मुझे बहर का दोष लगता है…किसी उस्ताद को दिखालें…
नीरज
सावधान करने वाली सुंदर रचना!