मेरी दीवार में एक छिद्र है उस छिद्र में संज्ञा है, क्रिया है, विशेषण है। जब भी लगाता हूँ अपनी आँख उस छिद्र से सब कुछ दिखाई देता है जो है दीवार के दूसरी ओर। दीवार के दूसरी ओर बच्चे…
छंदों से मुक्त हुए बहुत दिन हुए कविता ! क्या तुम्हारी साँस घुट सी नहीं गई ? मैंने देखा है मुझे डांटती हुई माँ की डांट पिता की रोकथाम पर झल्लाहट बन जाती है टूट जाता है उस डांट का…
A Screenshot of Qasba मैं ठीक अपने कस्बे की तरह एक कस्बे (क़स्बा -रवीश कुमार का ब्लॉग) का जिक्र करना चाहता हूँ जो मेरे कस्बे की तरह रोज तड़के चाय की भट्ठियों के धुँए के बीच आँखे मुँचमुँचाता, सजग होता-सा…
राजकीय कन्या महाविद्यालय के ठीक सामने संघर्ष अपनी चरमावस्था में है, विद्रूप शब्दों से विभूषित जिह्वा सत्वर श्रम को तत्पर है, कमर की बेल्ट हवा में लहरा रही है और खोज रही है अपना ठिकाना , तत्क्षण ही बह आयी…
Geetanjali: Tagore He came and sat by my side but I woke not. What a cursed sleep it was, O miserable me! He came when the night was still;he had his harp in his hands and my dreams became resonant…
पिस-पिस कर भर्ता हुए समय के कोल्हू में तुम समायातीत बनो तो मर्द बखानूँ मैं। जाने कितने घर-घर के तुम व्यवहार बने कितने-कितने हाथों के तुम औजार बने रंगीन खिलौनों वाली दुनियादारी में तुम दर-दर चलते फिरते बाजार बने, बन…
तुम्हें नहीं पता कितनी देर से तुम्हारी राह देख रहा हूँ । तुमने कहा था आने के लिए अंतरतम में अनुरागी दीप जलाने के लिए मुझे बहलाने के लिए और प्रणय के शाश्वत गीत सुनाने के लिए पर तुम नहीं…
मैं देखना चाहता हूँ तुम्हें हर सुबह कि मेरा दिन बीते कुछ अच्छी तरह, कि मेरे कल्पना लोक की साम्राज्ञी बनो तुम,कि आतुरता का विहग तुम्हारी स्मृति का विहान देख उड़ चले, कि मेरा विरह-कातर हृदय तुम्हारे दर्शन मात्र से…
कुछ दिनों पहले एक भिक्षुक ने दरवाजे पर आवाज दी। निराला का कवि मन स्मृत हो उठा। वैसी करुणा का उद्वेग तो हुआ, पर व्यवस्था के प्रति आक्रोश ने शब्द का चयन बदल दिया। क्षमा के साथ। कुछ कहेंगे इस…
बहुत पहले एक आशु कविता प्रतियोगिता में इस कविता ने दूसरी जगह पाई थी। प्रतियोगी अधिक नहीं थे, प्रतियोगिता भी स्थानीय थी, पर पुरस्कार का संतोष इस कविता के साथ जुड़ा रहा है। कविता ज्यों कि त्यों लिख रहा हूँ-…