आओ चलो, दीप रखते हैं (कविता)
आओ चलो, दीप रखते हैं कविता जीवन के हर उस कोने…
Arattai – संदेश और संवाद माध्यमों का स्वदेशी संस्करण
आत्मनिर्भर भारत के गुंजित स्वर में प्रधानमंत्री के स्वदेशी अपनाने के…
आशीष त्रिपाठी का काव्य संग्रह शान्ति पर्व
शान्ति पर्व पढ़ गया। किसी पुस्तक को पढ़ कर चुपचाप मन…
नवागत प्रविष्टियाँ
काल पुरुष को नमस्कार
समझदारों ने बड़ी आत्मीयता से यह समझाया है कि पुरुष बली नहीं है, समय बली है। समय से हारा हुआ…
तुम भी उबर गये पथरीली राह से
तुम अब कालेज कभी नहीं आओगे। तुम अब इस सड़क, उस नुक्कड़, वहाँ की दुकान पर भी नहीं दिखोगे। तुम…
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O fool, to try to carry the self upon thy own shoulders!
The poem “O fool, to try to carry the self upon thy own shoulders!” by Rabindranath Tagore is a profound…
उस समाज पर गाज गिरे जिसके तुम नायक
एक पार्टी का झंडा लिये एक भीड़ मैदान से गुजरी है। अपनी पड़ोस का कुम्हार उसी में उचक रहा है।…
ऐसी मँहगाई है कि…
ऐसी मँहगाई है कि चेहरा हीबेंच कर अपना खा गया कोई।अब न अरमान हैं न सपने हैंसब कबूतर उड़ा गया…
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निंदक वंदना का विवेक-सत्य
यूँ तो सीधी सीधी निंदक वंदना नहीं की, पर ‘निंदक नियरे राखिये’ की लुकाठी लेकर कबीर ने आत्म परिष्कार की…
