Geetanjali: Rabindra Nath Tagore
Tagore by Chiranjit Mitra (CC BY-NC-ND 3.0) |
Let only that little be left of me
whereby I may name thee my all.
Let only that little be left of my will
whereby I may feel thee on every side, and
come to thee in every thing, and offer to
thee my love every moment.
Let only that little be left of me whereby I
may never hide thee.
Let only that little of my fetters be left
whereby I am bound with thy will,
and thy purpose is carried out in
my life-and that is the fetter of thy love.
हिन्दी भावानुवाद: प्रेम नारायण पंकिल
बस इतना ही स्वल्प हमारा रहने दो प्रभु शेष
जिससे मैं सर्वस्व कह सकूँ तुमको हे प्राणेश।
हो दिशि दिशि में अनुभव तेरा वस्तु वस्तु में संग
प्रति क्षण प्रीति-दान मय हो ऐसा अभिलाषा रंग
तुम्हें छिपा पाऊँ न कभी भी हे मेरे सर्वेश –
जिससे मैं सर्वस्व कह सकूँ तुमको हे प्राणेश।
बँधा तुम्हारी इच्छा से हूँ रहने दो यह बंध
तव उद्देश्य पूर्ति ही पंकिल जीवन गति संबंध
यही तुम्हारे प्रेम रज्जु का बंधन हमें न क्लेश-
जिससे मैं सर्वस्व कह सकूँ तुमको हे प्राणेश।
गीतांजलि के अन्य भावानुवाद
एक, दो, तीन, चार, पाँच, छः, सात, आठ, नौ, दस, ग्यारह, बारह, तेरह, चौदह, पन्द्रह, सोलह, सत्रह, अट्ठारह, उन्नीस, बीस, इक्कीस, बाइस, तेईस, चौबीस, पच्चीस, छब्बीस, सत्ताइस, अट्ठाईस, उन्तीस, तीस, इकतीस, बत्तीस, तैतीस